तुम भी आओ!
रंग-बिरंगी बातें ले घर आया फागुन तुम भी आओ ! बन्द खिड़कियों ने खुश हो घूँघट सरकाया रंग-अबीर हवा में घुल आँगन में छाया बतरस की सौगातें ले घर आया फागुन तुम भी आओ ! मृगतृष्णा ही सही भली लगती है मन को गए दिनों की खुश यादें बहलातीं दिन को केसरिया-सी रातें ले घर आया फागुन तुम भी आओ! नुक्कड़-नुक्कड़ फूले हैं गेंदे-से मुखड़े फगुनाई थापों ने छीने सबके दुखड़े खुशियों की बारातें ले घर आया फागुन तुम भी आओ! ***