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पड़ोसी के गुलमोहर पर आया बसंत

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माघ विदा हो रहा है। ठिठुरती ठंड उसी के साथ जाने को मचल रही है लेकिन माघ भी कम चालाक नहीं , उसने मुस्कुराकर ठंड का हाथ फागुन के हाथ में पकड़ा दिया। फागुन ने काँपती बूढ़ी ठंड को झटपट धूप का गुनगुना स्वेटर पहना दिया। स्वेटर पहनकर वृद्धा ठंड संतुष्ट प्रेमिका की तरह मुस्कुराकर इतराने लगी। फागुन ने ‘ कड़ाके की सर्दी ’ का नाम बदलकर ‘ गुलाबी सर्दी ’ रख दिया। बच्चों ने अपने स्वेटर उतार कर फेंकना शुरू कर दिए। थोड़े ही दिनों में फागुन की हवा में जमा-सिमटा दुबका पड़ा भू-भाग अचानक रूखेपन से जूझने लगा।   फागुन की झोली से धीरे से पतझड़ निकल कर चारों ओर बिखर गया तो बाग़-बगीचे सहम गए। नीम के नीचे पीले पत्तों का समुद्र बह निकला। डालियों ने पतझड़ को गलबहियाँ डालने से इंकार किया लेकिन उनकी जिद ज्यादा दिन चल न सकी। बदलते मौसम की पलक झपकते ही चारों ओर तीव्र पतझरी संगीत गूँज उठा और न चाहते हुए भी डालियों को समर्पण में अपने हाथ उठाकर काया पतझड़ को सौंपनी पड़ी। पतझड़ के दिन अबोली चुप्पियाँ लिए विकल वैरागी की तरह इतने भटके कि शामें अनमनी हो खुशियों की परिधि के बाहर छिटक गयीं। जीवन-सरिता मौसम की संधि-शून्यता में ल