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Showing posts from March 28, 2021

आओ खेलो होली

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  किंकर्तव्यविमूढ़ खड़े क्यों आओ खेलो होली है।।   सपने में आई थीं अम्मा पूछ रही थीं हाल तुम्हारा मौन संजोए तुम वर्षों से कैसे कहती चाँद-सितारा   दरवाजा खोला अम्मा ने खिड़की हमने खोली है आओ खेलो होली है।।   वस्तुनिष्ठता समझ न पाए अम्मा के अरमानों की हम कर बैठे आकृतियाँ धूमिल मधुमासी आवाज़ों की हम   सन्नाटों को मुखरित कर दो फगुआ की ढोलक बोली है आओ खेलो होली है।।   मूल्याँकन को छोड़ सजाएँ चलो बिगड़ती जीवन गाथा देर रात तक रही दबातीं जैसे माँ बचपन का माथा   आँखों के जल सागर में तिर मन की मछली डोली है आओ खेलो होली है।।   ***  

अच्छे लगते हैं सब दाग

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  गम गम गम गम गमकी चाल होली आई लेकर फाग अच्छे लगते हैं सब दाग।।   महुआ की मादकता लेकर     झूम रहा है दिनकर राज भौजी के कानों में बजता फगुनाई का मधुरिम साज   लाल हुआ है टेसू भाल अमराई ले झूमें बाग़ अच्छे लगते हैं सब दाग।।   दौड़ी हुरियारों की टोली बाबा ने जब घोटी भंग पान चाबती फिरें सहेली अम्मा मन में होती दंग   प्रहलादी हो मचली चाल ढुंढी वृत्ति मिली जब आग अच्छे लगते हैं सब दाग।।   चकला बेलन चले रसोई गुझिया की सब करते बात कड़छी झाबे तवा चीमटा चलते रहते सारी रात   भाँग धतूरे पूछें हाल गूँजा हृदय फगुनिया राग अच्छे लगते हैं सब दाग।।   ***