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Showing posts from September 5, 2020

कमल पत्ते-सा हरा-भरा गाँव

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अभी दीवाली के दिन आये नहीं हैं और हवा में ठंडक आ गयी है । ये बदलाव प्रकृति के समृद्ध होने का सूचक कहा जाएगा ।  अभी तो ये आते हुए सितम्बर की शाम है ।  बहती हवा में सर्द खुनक दौड़ रही है ।   मन हो रहा है कि एक खादी का सूती दुपट्टा ओढ़ लें , थोड़ा मोटा कपड़ा होता है न खादी के दुपट्टे का । चाय का कप लिए आज ऐसे ही बालकनी में आने का मन हो गया । चारों ओर नहाए-धोये पेड़-पौधे ख़ुशी में सर हिला- हिला कर झूम रहे हैं । कोरोना ने आदमी को कितना ही दुःख क्यों न दिया हो लेकिन प्रकृति को बड़ा संतोष प्रदान किया है । बालकनी में फैली मालती की बेल की हौंस देखकर भला कौन कहेगा ये दुखी है । इसकी प्यारी छटा से लगभग बालकनी भर चुकी है । मुझे दीवार के पास खड़ा देखकर मालती की एक लता ने मेरे काँधे पर धप्पा मारा जब मैंने उसे छूने को हाथ बढ़ाया तो हरी-हरी किलकारी मारकर दूर भाग गयी । अभी उसकी मनुहार से मन रोमांचित हो ही रहा था कि आसमान की ओर मेरी दृष्टि चली गयी । पंछियों की कतारें तो नहीं कह सकती   इस महानगर में लेकिन काफी पंछी अपने नीड़ों   की ओर लौट रहे हैं । इक्का-दुक्का गौरैयाँ अभी भी अपने खेल में मगन हैं , शायद उनके घर यही