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पक्के मन का कच्चा चिट्ठा

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  पेंटिंग : प्रयाग शुक्ल  Sharing a painting I did recently.Untitled : 5.6 "× 8 ", acrylic on paper : prayag shukla आ. प्रयाग शुक्ल जी ने इस पेंटिंग का शीर्षक नहीं दिया है इसलिए मैं इसे "जेल प्रेयर्स" शीर्षक से लिख रही हूँ. आशा है पसंद आये... ***************************************** पक्के मन का कच्चा चिट्ठा- तुम जो अविरल मुस्कुराती हो , मुझे क्यों गुनगुनाहट महसूस नहीं होती अब ? क्यों में तुम्हारे बाद या तुमसे अलग जीने का अभिलाषी होता जा रहा हूँ ? जबकि हम उस चरागाह में कभी गए ही नहीं , जहाँ गायों को दूध बढ़ाने के लिए ग्वाला चराता है. न ही हमने उस दर्पण को देखने की कभी कोशिश की जिसमें हमारी तस्वीर की ओट में तुम छिपी दिखो। भरी नींद में भी हमारी चादर को अपनी ओर नहीं घसीटा। हमारे तुम्हारे बीच पुल का निर्माण हमने अपनी स्वेच्छा से किया था. फिर ये काँपता क्यों रहता है ? हम इस पार से उस पार तक की यात्रा में सहज क्यों नहीं हो पाते हैं ? हमारे मन के कपाट असमय क्यों खुलते और बंद होते रहते हैं. जबकि हमने अपने सपनों में माता-पिता के साथ घर को देखा , परिवार को देखा और जब तुम