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"बाँस भर टोकरी" पर उषा की प्रतिक्रिया

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  कहते हैं कविता एक कवि की भावनाओं का उद्घाटन है। कविता कवि की संवेदनाओं का प्रवाह है। जिसके कारण वह अपने भावों को व्यक्त कर पाता है। ऐसा ही काव्य संकलन ' कल्पना मनोरमा ' जी की कविताएं का भी है। जिन्होंने बहुत ही शांत भाव से अपनी कविताओं को व्यक्त किया है। ' बांस भर टोकरी ' की कविताओं से गुजरते हुए ऐसा शांत भाव का माहौल पैदा हो जाता है , जैसे कोई प्रेमी अपने मनोरम प्रेम में डूबे हुए अपनी प्रेमिका की प्रतीक्षा की राह देख रहा हो। कल्पना मनोरमा जी ने इस काव्य संग्रह का नाम बिल्कुल सटीक दिया है। ' बांस भर टोकरी ' जो मानवीयता के विराट दर्शन की ओर इशारा करती है । यदि हम यहाँ टोकरी को स्त्री और बांस को ईश्वरीय तत्व का प्रतीक मान लेते हैं , तो कवयित्री का कहना बिल्कुल सही ठहरता है। जिस विराटता का अंश पुरुष है तो स्त्री भी उसी का अभिन्न अंग होती है। फिर समाज के प्रति इतना भेदभाव क्यों ? ' मनोरमा ' जी ने अपनी कविताओं में एक ऐसी औरत की खोज की है जिसकी चेतना स्वतंत्रता की मांग करती है। दरसल आज औरतों के हिस्से में जो कमोबेश आजादी आई है। वह अधूरी है। स्त्री या पुरुष