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गवईं ठसक, कसक और विचारों की कहानियाँ : गुलाबी नदी की मछलियाँ

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समीक्ष्य पुस्तक- “गुलाबी नदी की मछलियाँ” लेखिका – सिनीवाली शर्मा समीक्षक: कल्पना मनोरमा साहित्यिक परिदृश्य में रचयिता जब स्त्री होती है तो मुझे लगता है कि संवेदनाएँ थोड़ी और गझिन और तरल हो उठती हैं। कहानियों का कथ्य अपने दीर्घ और व्यथित मन को उघार देता है , याकि स्त्री लेखक की आँख से जीवन के वे विन्यास छिप नहीं पाते हैं जो देखने में लगते छोटे हैं पर पीर गहरी देते हैं। समय की दृष्टि और सृष्टि दोनों बदली है लेकिन गाँव में मानव जीवन की भूमिकाएँ इतनी नहीं बदली हैं कि उनको अनदेखा कर दिया जाए। ये विचार तब और गहन हो जाता है जब सिनीवाली शर्मा का कथा संग्रह ‘गुलाबी नदी की मछलियाँ’ पढ़ती हूँ।      अंतिका प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड से प्रकाशित इस कथा संग्रह में कुल नौ कहानियाँ हैं , जिनके कथ्य और तथ्य भिन्न होने के कारण कहानी पढ़ते हुए ऊब नहीं होती है। एक बात और — कथाकार ने गाँव की कहानियाँ कहने के लिए अपनी भाषा को गाँव की बोली , मुहावरों , लोकोक्तियों के इर्दगिर्द रखा है। किरदार तो गाँव के हैं ही कहीं-कहीं नरेटर भी अपने किरदारों के मन की बातें कहते हुए उनकी बोली-वानी में बोलने लगता है।   कहानी में नर

सुकन्या

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   ये कहानी समकालीन उभरती मनोवृत्ति को उजागर करती है. स्त्री-पुरुष की सत्ता बराबर की है. पुरुष स्त्री नहीं बन सकता, ठीक उसी तरह स्त्री पुरुष नहीं बन सकती. वैसे शक्तियाँ सबमें बराबर रहती हैं लेकिन गुला नाम की किरदार अपनी बेटी को बेटा बना देने पर आमादा है.         नवम्बर का पहला रविवार। सुकन्या के आने से गुला का घर खुशियों से भर गया। बेटियाँ जीवन की रौनक होती हैं। सुकन्या की माँ गुला ने कहते हुए बेटी को गले लगा लिया। बहू मुस्कुराकर देख रही थी। उसे इशारा किया तो पग-प्रच्छालन हेतु वह थाली में जल ले आई। केतकी अर्थात नाउन बुआ , पहले से बिराजी थीं। सुकन्या के पाँव धोने लगीं।     “ कैसन अबहूं फूल नामा पांय धरे हैं बिटेऊ के। लिआव छुटकी के पाँव ऊ पखार देवें। ” सुकन्या की बेटी का पांव थाली में खींचते हुए केतकी बोली।      “ केतकी! तुम भूल गयीं ? मालिश तुमने ही की है सुकू की। कल से इसकी बेटी की मालिश के लिए भी आना है तुम्हें। ” गुला ने कहा। आने की हामी भरते। अशीषते। नेग लेकर केतकी चली गयी।      बेटी सुकन्या और नातिन का रूप-रंग देखकर गुला को आत्मसंतोष ही नहीं , गुरूर भी हो रहा था। बड़