समय रहते पहचान लो अपनी कीमत नहीं तो कोई चीन , कोई जापान उठा ले जायेगा तुम्हारा बुद्ध किसी पेड़ के नीचे पड़े आम की तरह और तुम रह जाओगे बनकर बुद्धू प्रेम प्रयोगों में नहीं प्राप्तियों में निहित है प्रेम कहता है कहीं भी जाओ अपने साथ मन , प्राण , आत्मा को ले जाओ इनके बिना शरीर काम नहीं करता किसी और से मिलने से पहले खुद से मिलो जैसे पानी से पानी , बादल से बादल , धूप से धूप , रंग से रंग खुशबू से खुशबू मिलती है अपने को मत छोड़ो किसी और के सहारे उठाओ हाथ आसमान की ओर और छू लो अपना माथा जहां आज भी रखा होगा माँ का एक गुनगुना चुंबन उठाकर प्रेम को वहाँ से मल लो अपनी आँखों पर ताकि देख सको दुनिया को ज्यादा प्रेम से पहचान सको कीमत उसकी जो हमेशा मौन रहा , नदी के बीच , नदी की तरह। ***