Posts

Showing posts from August 27, 2022

स्वातंत्रय चेता नारी की कविताएँ

Image
डॉ. कृष्णा श्रीवास्तव जी की समीक्षात्मक टिप्पणी    " बाँस भर टोकरी " कविता संग्रह जो वनिका पब्लिकेस से अभी हाल ही में आया है। उस संग्रह की लगाभग कविताएँ स्वातंत्रय चेता नारी की कविताएँ हैं। कल्पना की कविताओं में जहाँ पुरुष और नारी एक दूसरे के पूरक बने रहने की कामनाएँ करते हैं , वहीं स्वतंत्र मगर स्त्री को मर्यादित स्व में लिप्त रहकर उच्च से उच्चतर जीवन जीने की मान मनौअल्ल है। जैसे बाँस और उससे बनी टोकरी अथवा बाँसुरी दोनों में ही विराट तत्व का समावेश है , दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। जैसे— जल में कुंभ , कुंभ में जल है भीतर बाहर पानी।   कल्पना का मानना है कि जब पुरुष और स्त्री एक ही तत्व से निर्मित हैं तो स्त्री दमित और तुच्छ क्यों है ? कविताएँ पढ़ते हुए महसूस होता है , कवयित्री दुनिया को न पूर्ण स्त्रीमय देखना चाहती हैं न पुरुषमय , वह तो स्त्री और पुरुष दोनों को अपने-अपने स्व में जाग्रत रहकर समानांतर चलता हुआ देखने की बात कहती हैं पर किसी के द्वारा किसी की भी छाया को घेरना कवयित्री बहुत गलत मानती है। बस इसी असमानता की खाई में पनपती कई कई कविताएं इस में पढ़ी जा सकती हैं। कविता ‘