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यथार्थ के रंग

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" आवरण बाँचे"- सीरीज में आज रेखा श्रीवास्तव जी की कृति ”यथार्थ के रंग” मेरे सामने है- रेखा श्रीवास्तव जी से मेरा परिचय कानपुर आई.आई. टी. में हिंदी भाषा के किसी कार्यक्रम में हुआ था। आपके स्नेहिल स्वभाव ने मुझे कम समय में ही मित्रवत स्नेह दिया और हम कह सकते हैं कि आप रेखा दी बन गई हैं। आज आपके द्वारा आपका नवप्रकाश्य लघु कथा संग्रह का आवरण मुझे प्राप्त हुआ। आवरण देखकर जो पहला ख्याल आया , वह यही था कि किसी ने कितनी चतुराई से शीर्षक ,” यथार्थ के रंग” को आवरण चित्र के माध्यम से सत्य को जुबान दे दी है। आवरण पर कई रंगों के पत्र बिखरे दिख रहे हैं वे नीम , बबूल , आम , शीशम , पीपल या बरगद के भावुक पत्ते नहीं हैं अपितु ये पावन-प्रबुद्ध पत्ते , विदेशी हैं। जैसे हम हमेशा पाश्चात्य संस्कृति को बड़भागी संस्कृति मानते हुए उससे घुलने-मिलने की कोशिश करते हैं और न चाहते हुए भी अपना साधुत्व लुटा बैठते हैं। ऐसी तमाम भाव-भंगिमाएं आवरण के चित्र और शीर्षक” यथार्थ के रंग” को परिभाषित कर रही हैं। आवरण के चटक रंगों से जहाँ आँखें चौंधियाती-सी महसूस हो रही हैं , वहीं पानी के ऊपर तिरतीं पत्र परछाइयों की तर