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एक शाम अकेली-सी

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अभी दीवाली के दिन आये नहीं थे और हवा में ठंडक आ गयी थी लेकिन लोगों को कहते सुना था कि ये बदलाव प्रकृति के समृद्ध होने का सूचक ही कहा जाएगा । मतलब कोविड - 19 महामारी जो दुनिया जहान को तहसनहस करने पर तुली है वह प्रकृति पर महरबान है ? मेरा मन मानने को राज़ी नहीं था लेकिन उससे क्या होता है ? क्या सच में कुछ अच्छा हो रहा था हमारे इर्दगिर्द? जिसे हम देख नहीं पा रहे थे। वैसे अभी तो ये आते हुए सितम्बर की शामें थीं और बहती हुई सर्दीली हवा में झुरझुरी उठाने वाली खुनक दौड़ पड़ी थी। मैंने अपने उम्र के प्रथम पड़ाव में लोगों को खूब कहते सुना था कि मौसम में अचानक बदलाव आना चिंताजनक होता है। अचानक बदालव तो सच में हजम नहीं होता। चाहे दैवीय हो या मानवीय। पुराने लोग जानते थे कि प्रकृति कभी भी अपनी चाल में जल्दी - जल्दा बदलाव नहीं करती और जब करती है तो निश्चित ही कुछ अघटित ही घटता है। अभी मैं सोच ही रही थी कि एक पवन के ठंडे झकोरे ने मेरे म