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भानपुरा की लाडली बेटी

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पतझड़ आने पर बाग़ दुःख नहीं मनाता क्योंकि उसे मालूम होता है कि  सारे मौसमों में एक पतझड़ ही तो है जो बसंत को अपने दुपट्टे में बाँधकर लिए चला आता है। लेकिन जब किसी कुटुंब-तरु पर बेवक्त पतझड़ किसी पत्ते को झपटता है तो उस डाल का दुःख सम्हाले नहीं सम्हलता पर इसके परे समय अपनी धुन में निरंतर चलते हुए अपनी अमिट छाप संसार की किसी भी नाज़ुक या कठोर डाल पर छोड़ता चलता है। इसी को शायद नियति कहते हैं।  समय जिस रास्ते को एक बार तय कर लेता है , उसे  मुड़कर नहीं देखता और न ही किसी स्फटिक शिला पर बैठकर प्रतीक्षा करता है, कोई प्रबुद्ध-समृद्ध आकर उसकी आरती उतारे और पाँव के निशान लेकर धरोहर के रूप में अपने पास सुरक्षित कर ले। काल जीवन को सम्हलने का मौका दिए बगैर अपने पीछे दौड़ाने में सुख मानता है। इसके बावजूद भी दुनिया में घटित-अघटित सब कुछ लिखा जाता है। जब शब्द, स्याही और कलम नहीं बने थे तब प्रकृति अपनी तरह का इतिहास लिखती थी क्योंकि हमारी मानवीय चेतना और सोच के ऊपर कोई है, जिसके इशारे पर हवा चलती है और सूरज दहकता है। उसके यहाँ जितना हाथी का मोल है, उतना ही चींटी का। उसे जितनी बरगद की आवश्यकता है उतनी ही छ