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Showing posts from October 13, 2020

इस बार क्वार में

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छोटी-छोटी तितलियों वाले दिन खोज लाते हैं भूलीं-सी यादें मेरे मन की बचपन के गाँव में पसरी होगी  खुशबू  रँधे भात-सी हवा के अन्नमय झौकों के साथ गाँव के इस पार से लेकर उस पार तक   बेरी में लगने लगे होंगे फूल मधुमक्खियों के झुण्ड टूटने लगे होंगे बेरी और बबूल के छतनार पेड़ों पर खेत में झुक आईं होंगी रामभोग धान की रुपहली और सुआपंखी बालियाँ बाबा की गोल-गोल आँखों में खिंच गया होगा सालभर की जरूरतों का बड़ा वितान   अम्मा के आँगन में फूल पड़ा होगा हरसिंगार मनभर याकि उनके सपनों की बन्द किलियाँ गई रात चुपके से फूलने लगी होंगी हरसिंगार के संग-संग   उतरने लगी होगी चाँदनी अम्मा की खटिया पर दबे पाँव बताने उनको " इस बरस होगी तुम्हारी हर साध पूरी" अम्मा हमेशा की तरह मुस्कुराई होगी किन्तु होंठों के भीतर ही भीतर   " समय से पहले की हँसी छूंछी होती है" कहती थीं अम्मा हमसे जब हम खिलखिला पड़ते थे तारों के टूटने पर   हरी लहरिया की सूती धोती की कोर के नीचे चमकने लगी होगी नारंगी बिंदी शगुनों वाली, भोर के गीले माथे पर हो गई होगी ह

तुम करो मंत्रणायें जीने कीं

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तुम करो मंत्रणायें   जीने कीं   हम करते हैं, प्रार्थनाओं में प्रार्थनाएँ तुम्हारे लिए और सोई हुई उन तमाम वीर बालाओं के लिए जिनके चलने से स्पंदित हो उठेंगी आत्माएँ हमारीं तुम चलो कि तुम्हारे संग चले पड़ें हज़ार-हज़ार सोये मन   भरो हुंकार की जाग उठे हठी स्त्री की नींद में समोया रहने वाला जिद्दी आदमख़ोर आलस्य तुम देखो निगाह में भरकर बाघिन के शौर्य को कि छटपटा उठे मारिचिकाओं का जल शावक कि मिला दें अपना होना दिशाएँ तुम्हारी दूर दृष्टि में तुम उठाओ कदम कि दौड़ पड़ें बिछने को कमल तुम्हारे कदमों में छोड़कर कमल ताल के उस कीचड़ को जो होता होगा औरों के लिए कीचड़ किन्तु कमल जानता है उसकी कीमत अमृत जितनी तुम जागो ,  उठो ,  भूलो अपनी देह को जैसे भूल जाती है एक नागिन  केंचुल को कहीं छोड़ने के बाद क्योंकि तुम सिर्फ देह नहीं  देह के उस पार और इस पार  सिर्फ़ तुम हो  तुम्हारी देह तुम्हारे बाद है  देह परिधान है आत्मा का याद करो गीता के उस कथन को तुम संसार को वैसे ही महसूस करो जैसे करती है एक कली सूरज के प्रथम दर्शन के समय  तुम्हारे ध्यान में होना होगा  आनन्द  पूर्ण खिलने का फूल  , पराग  , तितली और भौंरे करेंगे अपना