इस बार क्वार में
छोटी-छोटी तितलियों वाले दिन
खोज लाते हैं भूलीं-सी यादें
मेरे मन की
बचपन के गाँव में पसरी होगी खुशबू
रँधे भात-सी हवा के अन्नमय झौकों के साथ
गाँव के इस पार से लेकर उस पार तक
बेरी में लगने लगे होंगे फूल
मधुमक्खियों के झुण्ड टूटने लगे होंगे
बेरी और बबूल के छतनार पेड़ों पर
खेत में झुक आईं होंगी रामभोग धान की
रुपहली और सुआपंखी बालियाँ
बाबा की गोल-गोल आँखों में खिंच गया होगा
सालभर की जरूरतों का बड़ा वितान
अम्मा के आँगन में फूल पड़ा होगा
हरसिंगार मनभर
याकि उनके सपनों की बन्द किलियाँ
गई रात चुपके से फूलने लगी होंगी
हरसिंगार के संग-संग
उतरने लगी होगी चाँदनी
अम्मा की खटिया पर दबे पाँव
बताने उनको
"इस बरस होगी तुम्हारी
हर साध पूरी"
अम्मा हमेशा की तरह मुस्कुराई होगी
किन्तु होंठों के भीतर ही भीतर
"समय से पहले की हँसी
छूंछी होती है"
कहती थीं अम्मा हमसे
जब हम खिलखिला पड़ते थे
तारों के टूटने पर
हरी लहरिया की सूती धोती की कोर के नीचे
चमकने लगी होगी नारंगी बिंदी
शगुनों वाली, भोर के गीले माथे पर
हो गई होगी हवा की सगाई
मौसम के साथ गाँव में
दशहरे के मेले की हौंस
घुलने-मिलने लगी होगी गाँव की
अल्हड़ बालाओं की साँसों में
झिंझिया-टिशुआ के इस खेल के लिए
बंट गए होंगे टोले आपस में
साँझ होते निकलेंगी अब लड़कियों की
टोलियां झिंझिया माँगने
टिशुआ लिए लड़कों के झुण्ड में से
कुछ प्रेमी लड़के
खोजेंगे अपनी-अपनी प्रेमिकाओं को
अँधेरे की ओट लेकर
पंद्रह दिन चलेगा प्रेम का ये खेल और
क्वार की पूर्णमासी को गाँव के बड़े तालाब
पर
ब्याह दी जाएगी झिंझिया,
टिशुआ के संग
बिना ये पड़ताल किये कि वह रख पायेगा
उसकी खुशी का पूरा ख़्याल
या भूला रहेगा अपनी धुन में
और बिना आहट-आवाज़ किये
रख दीं गयी होंगी ब्याह की लगनें गाँव में
गाँव की बेजुबान लड़कियों की
अपने हिस्से आये परायेपन के गीत में
रच-बसकर हो जायेंगी थोड़ी और पराई
गाँव-घर की लड़कियाँ
इस बार क्वार में।
***
Comments
Post a Comment