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सुविख्यात साहित्यकार निर्मला भुराड़िया के साथ कल्पना मनोरमा की बातचीत

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निर्मला भुराड़िया  निर्मला भुराड़िया हिंदी साहित्य और पत्रकारिता का ऐसा स्वर रही हैं, जिन्होंने लेखनी के साथ-साथ संपादन और जनसंचार की दुनिया में भी अपनी स्पष्ट उपस्थिति दर्ज़ करवाई है। निर्मला जी ने सामाजिक सरोकारों, स्त्री-जीवन के बहुआयामी पक्षों और पत्रकारिता की चुनौतियों को अपने अनुभवों से जोड़ कर लेखन किया है। वर्षों तक पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय रहते हुए उन्होंने भाषा की मर्यादा, विचार की प्रखरता और दृष्टिकोण की गहराई को साधा है। एक लेखक, एक संपादक और एक सजग नागरिक के रूप में उनकी यात्रा समकालीन हिंदी समाज की जटिलताओं को समझने का प्रयास किया है कल्पना मनोरमा ने।  इस बातचीत में पाठक निर्मला भुराड़िया जी के साहित्यिक अनुभवों, स्त्री दृष्टिकोण, पत्रकारिता में आए बदलाव और आज के समय में लेखन की जिम्मेदारियों पर बातचीत पढ़ेंगे।  कल्पना मनोरमा : आपने लिखना कब से शुरू किया? किसकी प्रेरणा से या स्वत:स्फूर्त, आपने जब लिखना आरंभ ही किया वह दौर कैसा था, साहित्यिक, सामाजिक, पारिवारिक और व्यक्तिगत तौर पर?    निर्मला भुराड़िया: मेरी लिखने की शुरुआत स्वत:स्फूर्त और अन...