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Showing posts from August 31, 2025

धरती की परंपरा

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धरती की परम्परा में हर वस्तु एक बीज है ऋतु आते ही फूट पड़ता है जीवन, अपनी जाति और धर्म लिए धरती तुच्छ को भी  व्यर्थ नहीं समझती सड़ी लकड़ी पर भी उग आता है फूल कोई उसे मशरूम कहता है, कोई कुकुरमुत्ता धरती कहती है जो मुझे थामे रहेगा, वही उगेगा, वही बढ़ेगा मृत्यु को भी यहाँ  जन्म लेने का अवसर मिलता है शून्य भी भर जाता है हरियाली से। कल्पना मनोरमा

"वे लोग" उपन्यास : गाँव–शहर की दूरी और स्त्री की आंतरिक पीड़ा का सूक्ष्म आख्यान है।

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"वे लोग" उपन्यास : गाँव–शहर की दूरी और स्त्री की आंतरिक पीड़ा का सूक्ष्म आख्यान है। " वे लोग" उपन्यास की लेखिका सुमति सक्सेना लाल के साथ कल्पना मनोरमा!   सुमति सक्सेना लाल जी का उपन्यास “वे लोग” सामाजिक यथार्थ और मानवीय संवेदनाओं का ऐसा पाठ है, जिसमें गाँव–शहर के द्वंद्व के साथ-साथ पारिवारिक रिश्तों की आंतरिक जटिलताएँ भी गहराई से उभरती हैं। माँ–बेटी के बीच के मानसिक द्वंद्व ही नहीं, भाई–भाभी का तरल मन भी पाठक को उन दिनों की याद दिलाता है, जब रिश्तों के लिए रिश्ते अपने भीतर स्पेस रखते थे। जिस दौर की पृष्ठभूमि में यह कृति रची गई होगी, उसमें शहर की सुविधाओं और आधुनिकता के साथ जीवन अपना आकार ले रहा था, जबकि गाँव अभी भी बुनियादी आवश्यकताओं से जूझ रहे थे। वहाँ गाय पाल लेना भी गृहस्थी चल जाने की उम्मीद बन जाता रहा था। इस अंतराल ने न केवल सामाजिक संरचना को प्रभावित किया, बल्कि रिश्तों और स्मृतियों के अनुभव को भी नया रूप दिया। कथावाचक की दृष्टि और स्त्री–संवेदना से भरी यह कृति की लिखत बार–बार दर्शन और मनोविज्ञान के तंतुओं में पाठक का मन उलझा लेती है। उपन्...