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मैं बक्सवाहा जंगल हूँ!

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  मैं बक्सवाहा जंगल हूँ! सदियों पहले मेरा जन्म हुआ था। तब से बुन्देलखण्ड की धरती ही मेरी माता है। मैं अपनी उत्त्पति में किसी और का नहीं सिर्फ प्रकृति और भू देवी का हाथ मानता हूँ। मेरे रूप लावण्य को निखारने वाली वही दोनों हैं। मैं अपने खान-पान के लिए स्वयं पर निर्भर हूँ। मेरा शारीरिक आकार-प्रकार न बहुत बड़ा है और न ही बहुत छोटा। मेरे तन के इर्दगिर्द कई एक नदियाँ अपनी निरन्तरता के साथ कलकल ध्वनि करती हुईं सदैव दौड़ती रहती हैं। हर एक मौसम की पावन पवन मेरा माथा सहलाती रहती है। मेरे आँगन की कोमल दूर्वा प्रत्येक जीव का बिछौना है। मैं जब किसी हिरन शावक को कुलाचें भरता हुआ , किसी दुधमुंहें को घोंसले में अपनी माँ की प्रतीक्षा करते देखता हूँ तो मेरा मन ख़ुशी से गदगद हो उठता है। आदिकाल से एक ही धुन में जीने वाले मेरे आदिवासी प्यारे भाई-बहन मेरे परिवार का ही हिस्सा हैं। मैं उन्हें अपनी बाहों में लेकर झुलाता हूँ। सुबह की प्रभाती और साँझ की नारंगी रश्मियों से भरे आसमान के तले संझाती गातीं बुलबुलें मेरी कुल वधुएँ हैं। अभी तक कितने मुगल और अंग्रेज आये-गए कोई भी मेरा बालवाँका नहीं कर पाया। कुल मिलाकर