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Showing posts from August 14, 2020

बोलने की आज़ादी

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शीना की आँख तड़के ही खुल गई ।   उसने इधर-उधर देखा घर संतोष लिए सो रहा था। उसने दोनों हथेलियाँ जोड़कर अपने चेहरे को छुआ । उसे भोर  अस्फुट-सी लग रही थी लेकिन सोने का मन भी नहीं था ।   थोड़ी देर सोच-विचार के बाद उठकर वह पार्क में  घूमने चली गई। मैदान में चारों ओर शांति फैली हुई थी ।   कुछ पक्षी सो रहे थे कुछ जाकर डालियों पर झूल रहे थे ।  शीना भाव विभोर होती जा रही थी । “हवा में यह किसकी खुशबू है ?  उसने स्वयं से पूछते हुए घड़ी देखी ।  समय काफी हो चुका था ।  मॉर्निंग वॉक पूरी कर वह घर लौट आई थी । घर में अभी भी कोई जागा नहीं था सो बिना खटपट किये अपने लिए   एक प्याला  कॉफी बनाकर सीधे स्टडी में आ गई ।  थोड़ी देर बाद  खिड़की से थोड़ी-थोड़ी रौशनी झाँकने लगी थी । कॉफी पीते हुए उसकी दृष्टि दीवार पर टंगी सुभाष चंद्र बोस की तस्वीर पर जा कर अटक गई ।  देखते-देखते वह उन्नीस सौ सैंतालिस   से लेकर आजतक की आजादी की समीक्षा में उलझती चली गई । “ गुड मॉर्निंग मम्मा ! ” शीना के बेटे ने बीनबैग में   बैठते हुए कहा । “ गुड मॉर्निंग बेटा! उठ गया मेरा शोना ?”  शीना ने घड़ी की ओर देखते हुए चश्मा उतारा और   एक छ

बिना परीक्षा के प्रमोशन

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  परीक्षा के विपक्ष में   काश हमेशा ऐसा होता बिना परीक्षा प्रमोशन मिल जाता बच्चे जीते अपना बचपन , फिर भी कल सुंदर हो पाता। मेरे   विचार "बिना परीक्षा प्रमोशन "को सही मानने के उपलक्ष्य में होंगे ।आशा करती हूँ आप सभी की सहमति मुझे मिलेगी। महोदय , परीक्षा की प्रकृति वस्तुपरक सूचना व ज्ञान को जांचना है न कि विषयी समझ की। यही कारण है कि शिक्षा आज के छात्रों के लिए न केवल बोझिल हो चुकी है बल्कि एक गैर जरूरी , गैर उत्पादक कार्य का रूप ले चुकी है।आज की   शिक्षा का मकसद डर पैदा करना   बन चुका है और डर से उन्नति नहीं अवनति ही हाथ आती है । आख़िर इस में बुरा ही क्या है ? कि बच्चे को परीक्षा नामक भूत से बिना डरे अपना जीवन यापन करने दिया जाए । जिस समय को चारों ओर से बुरा-भला कहा जा रहा है , उसी समय ने हम छात्रों को परीक्षा जैसे पेचीदा कार्य से बचाया है । ऐसा नहीं है कि हम छात्र पढ़ नहीं रहे हैं , और ऐसा भी नहीं है कि हमें हमारे भविष्य की चिंता नहीं है , बस खुशी की बात ये है कि मुल्यांकन नामक दानव के चंगुल से छुट्टी मिल गयी है । आपको ज्ञात हो परीक्षा के बाद उसके परिणाम की घोषणा जब होत

आज़ादी के रोज़

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" सुनो  दमयंती, मैंने इस्त्री गर्म कर दी है । मेरा कुर्ता आयरन कर दीजिए।" पति ने बड़ी विनम्रता से कहा ।   " अब रहने भी दो ,  क्या दीजिए-वीजिए लगा रखी है! जैसे हो वैसे ही रहो।"  दमयंती ने खुद को सामान्य रखते हुए बोला।  "अरे श्रीमती जी आप तो नाराज़ हो गईं। दरअसल आज एक विद्यालय में ध्वजारोहण के लिए मुझे बुलाया गया है।"  पति ने बत्तीसी दिखाई । " अच्छा   तो फिर जाइये महोदय! देर किस बात की लेकिन अपना कुर्ता स्वयं आयरन कर लीजिए। मैं आज बहुत व्यस्त हूँ।" दमयंती ने भी शब्दों से खेला, जिसे सुनकर दमयंती का पति लड़ाकू बिल्ली की तरह पंजों पर आ गया। " तू ,  बेटाइम  मेरा भेजा क्यों खाती है रे! कुर्ता प्रेस करती है या बताऊँ तेरे को  ?" पति खा जाने वाले स्वर में बोला । "अब तो बिल्कुल  मैं  कुर्ते को हाथ नहीं लगाऊँगी , आयरन तो दूर की बात है।"  दमयंती बोली। " आज़ादी का मतलब ये नहीं कि मैंने तेरी नाथ काट दी है, रुक अभी मैं...।"  पति ने दमयंती की ओर हाथ बढ़ाया ही था कि उसने झपटकर गर्म इस्त्री उसके आगे कर दी और बोल पड़ी ।  " कब तक लोगों को