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अम्मा वाले मेले

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  सोनजुही के सपने वाले याद आ गए दिन अलबेले ।।   लहक-लहक कर चलता था जब माटी का गुड्डा मतवाला गुड़िया पीठ झुकाये रचती चौका , पूड़ी हलुए वाला   त्योहारों की लड़ियाँ लाईं यादों वाले मेले-ठेले।।   बुआ भतीजे की जोड़ी पर प्राण निछावर करतीं दादी सो जाते थे हम सब छिपकर बढ़ते तारों की आवादी   चमक चाँदनी में दिखते हैं कच्चे-पक्के झोल-झमेले।।   कातिक चढ़ा चौखटें ज्यों ही दीया बन गया मन बौराया मौन नहावन पचभिकियों के कच्चे मन चूनर लहराना   फुलझड़ियों की सुखद रोशनी में थे अम्मा वाले मेले।। *** चित्र : अनु प्रिया