दिसंबर की डाल पर
दिसंबर की डाल पर खिलकर चुपचाप मुरझा चुके हैं ग्यारह फूल मधुमक्खियाँ आईं खेले भँवरे भी उनकी गोद में कितना लूटा किसने नहीं जानते बीत चुके ग्यारह फूल बारहवाँ फूल खिला है संकोच में वह जानता है उन फूलों के अवदान को अपने प्रति हवाएँ नाच-नाच कर सोख रही हैं फूल का गीलापन फिर भी बाकी है मुस्कान फूल के मन में जैसे डाल पर सोई चिड़िया के परों में बाकी बचा रहता है उड़ान के बाद थोड़ा-सा आसमान। ***