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Showing posts from March 7, 2022

दिन हुए कोयल-कोयल

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गाँवों में फागुन ज्यों-ज्यों गुनगुनाने लगता त्यों-त्यों फगुआ बतास हँसी-ठिठोली करती हुई घर-खलिहान एक करने को उतावली होने लगती है। कहने का तात्पर्य ये है कि भारतीय संस्कृति के लिए फागुन सिर्फ एक महीना नहीं बल्कि उत्सव का उल्लास है।   इधर सर्दी की विदाई हुई नहीं कि उधर खेतों में फसल का पकना और किसानों के घर कार्यों की बाढ़-सी आना शुरू हुआ।   इन दिनों गाँव में किसान जितना अपनी फसलें अगोरने में व्यस्त   दिखते थे , उससे कहीं ज्यादा ग्रामीण स्त्रियाँ अपने देशी दैनिक कार्यों में सिर से पाँव तक डूबी दिखने लगती हैं। मेरी माँ की अपनी तरह की व्यस्तताएँ होती थीं। उनके   व्यस्त दिनों में रेडियो पर प्रहसन या आँगन बाड़ी के कार्यक्रम जितना   सुनना जरूरी होता था तो कोई न कोई वे किताब भी पढ़ती थीं।   एक ओर चने , अरहर की दालें दली और फटकी जातीं तो एक ओर उनका रेडियो चलता रहता था।   एक ओर कढ़ाई-बुने किया करती तो एक तरफ माँ हाथ मशीन पर हमारे कपड़े सिल रही होती थीं तो कभी घर तो घर के बाहर के भी कार्य कर रही होती थीं। हर वक्त अपने आप को व्यस्त रखना मैंने अपनी माँ से ही सीखा है। हालाँकि मेरे बचपन में कभी न खत्म होने