Posts

Showing posts from May 10, 2023

संवेदनशील मनुष्य के जीवन की अनंत पीड़ा का कोलाज

Image
"नदी सपने में थी" काव्य संग्रह की अपनी बात  “ कला सिखाती नहीं , ‘ जगाती ’  है। क्योंकि उसके पास  ‘ परम सत्य ’  की ऐसी कोई कसौटी नहीं ,  जिसके आधार पर वह गलत और सही ,  नैतिक और अनैतिक के बीच भेद करने का दावा कर सके…तब क्या कला नैतिकता से परे है ?  हाँ ,  उतना ही परे जितना मनुष्य का जीवन व्यवस्था से परे। ”                                ( निर्मल वर्मा-ढलान से उतरते हुए से ) साहित्य के अग्रगण्य लेखक निर्मल वर्मा ने कितनी सुंदर बात कही है। जीवन से कलात्मकता को हटा दिया जाए तो जीवन अधूरा-अपूर्ण लगने लगेगा। तो क्या कविता कला की प्रतिरूप कही जाएगी ?  हाँ ,  जिस प्रकार कला किसी को कुछ सिखाती नहीं ,  जगाती है ,  उसी प्रकार कविता सोए हुए मनुष्य के मन में एक कलात्मक कौंध पैदा करती है। उसी कौंध में विवेकवान अपने जीवन की झलक पाकर उसे जीने की विधि को खोज   लेता   है। वरना जीवन काटना तो सभी को पड़ता   ही   है। वैसे कहा जाए तो विसंगति-बोध से भरी इस दुनिया में कविता मानसिक खलबली   मचाकर   किसी समाज सुधारक की भाँति कार्य करते हुए भले न दिखे लेकिन बेसुध मिथक दरकाने में सक्षम बन जाती है। वस्तुत