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Showing posts from April 17, 2022

इलाइची का पुष्प

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  हर फल से पहले संसार में उसका फूल आता है , जो बेहद कोमल और सुंदर होता है। क्या मनुष्य का भी.... ? निश्चित ही। शारीर विज्ञान पढ़ने और पढ़ाने वाले बताते हैं कि मानव फूल भी बेहद खूबसूरत और मोहक होता है। खैर , यहां बात हो रही है छोटी इलाइची के फूल की जो अपने आप में बेहद आकर्षक लग रहा है। इलाइची की खुशबू से कौन परिचित न होगा! वैसे फूल बांस का भी बहुत सुंदर होता है किंतु उसे शुभ नहीं माना जाता किंतु बांस इस भाव से परे ही रहता है। प्रकृति की संरचना में उपजती सृष्टि अभिष्ठ तो होती ही है साथ में उसकी निरापद अबोधता मन को बांधती भी है। प्राकृतिक रौ में सोचकर देखो तो बुरा भी लगता है कि जो तत्व अबोला और अहेतुक होता है , भला उसे शुभ अशुभ की डोर से कैसे बांध दिया जाता है। मुझे लगता है ईश्वर की संरचना में मनुष्य को छोड़कर किसी में भी अपने होने का अहम नहीं होता तो उसमें शुभता और अशुभता की मुहर लगाना क्या उचित होगा ? एक बात , दूसरे किसी एक व्यक्ति का अनुभव सभी प्राणियों का अनुभव नहीं बन सकता है तो फिर गांठ किस बात की ? हां , यहां से रूढ़ी पंथ का जन्म ज़रूर होता है जो जीवनपर्यन्त एक खुश मिजाज़ आदमी

नहीं लगता डर

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  नहीं लगता डर उन स्त्रीयों से जो होती हैं स्वाभाव से झगड़ालू न ही वे स्त्रियां खटकती हैं हमारी आपकी आँखों में जो बात बात पर बैठ जाती हैं फुलाकर मुंह अपना न ही वे स्त्रियां बुरी लगती हैं जो जन्म के साथ मौन लेकर होती हैं अवतरित न ही वे स्त्रियां खलती हैं किसी को भी जो कहने को सत्य कर बैठती हैं बतंगड़ खड़ा डर उन स्त्रीयों से लगता है जो किसी की अधसुनी बात को दौड़ पड़ती हैं लेकर आधी रोटी पर दार की तरह खाने परोसने वे साधती हैं निशाना हवा में और देती हैं तूल इतना कि लगने लगती है बे बात की बात भी अच्छे अच्छों को एकदम सच्ची लेकिन जब आता है वक्त करने को आमना सामना बन जाती हैं वे स्त्रियां कछुआ और छिपा लेती हैं मक्कारी भरा अपना सर सुरक्षा कवच के भीतर मामला ठंडा होने तक।  

बाँस भर टोकरी

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  कविता साहित्य की वह विधा है जिसमें किसी विशेष परिस्थिति में उपजे अंतर्मन के भावों को सुरुचिपूर्ण शब्दों में कलात्मकता से व्यक्त किया जाता है। कविता के भीतर जो रस रचता बसता है , वह रचनाकार की उस विशेष परिस्थिति की मानसिक उपज होती है जिससे प्रभावित हो कर वह अपने भावों को कलमबद्ध करता है। जैसा कि साहित्य दर्पणाकार ‘विश्वनाथ जी’ कहते हैं कि “रसात्मक वाक्य ही काव्य है। रस अर्थात मनोवेगों का सुखद संचार ही काव्य की आत्मा है।” तो ‘कल्पना मनोरमा’ की कविताओं की आत्मा में रची बसी रस गंध तो पढ़ने के बाद ही महसूस करुँगी फ़िलहाल उनकी कवितासंग्रह ‘बाँस भर टोकरी’ का आवरण देख कर अत्यंत सुखद अनुभूति हो रही है। बाँस जन्म से ले कर मृत्यु पर्यन्त हर सुख दुःख में हमारे उपयोग में आता है। फिर वह सूप हो , टोकरी हो , माड़ो(मंडप) हो या मृत्यु शैय्या! सभी जानते हैं कि बाँस आजीविका का साधन भी है। जैसा कि चित्र से भी ध्वनित हो रहा है। खैर...आज कविता दिवस पर आपके दूसरे काव्य संग्रह ‘बाँस भर टोकरी’ हेतु अनेकानेक बधाइयाँ लेखनी की निरंतरता बनी रहे। शुभकामनाएँ !! टिप्पणीकार मीनाधर  

तुम घबराना मत!

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  जब लगने लगे दुनिया में तुम्हें चाहने वाला कोई भी नहीं बचा है , तो भी तुम घबराना मत! न ही भयाभय सन्नाटों से मात खाकर आत्मदाह करने की सोचने लगना। हाँ , एक काम तुम ज़रूर करना। तुम खुद को बेजोड़ चाहने लगना।फिर देखना समय तुम्हारे लिए हँसी और मानवीय पहलकदमी के कैसे-कैसे मौके खोज-खोज कर जोड़ लाएगा कि तुम दंग हुए बगैर न बच सकोगे।  लेकिन ये सब कुछ बहुत जल्दी , पलक झपकते नहीं होगा इसलिए तुम्हें धैर्य धरना भी सीखना होगा। ***    

केतकी का फूल

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  वैसे तो केतकी का फूल मैंने आज पहली बार देखा है लेकिन इसकी सुंदरता का वर्णन बचपन में आजी की कहनी , " मैया करेला खायो जी" में खूब सुना था। बड़ा मन था कि कभी केतकी को नज़र भर देखें। जब सामने आई तो दंग रह गई। कोमलांगी केतकी की बनक ठनक , रंग रूप सब मृदुल किंतु रहने को जो डाली मिली वह कितनी कठोर। कठोरता में जन्म लेने वाली केतकी अपनी ताकत भर सुंदर है। क्या सौंदर्यबोध उसके हिस्से स्वयं चला जाता है जो कठोरता को मन बेमन घूंट घूंट पीता रहता है ? यहां गुलाब की चर्चा करना अनुचित ही कहलाएगा ? क्योंकि गुलाब सोचे तो भी वह केतकी नहीं बन सकता और केतकी गुलाब...। सभी तत्वों का अपना सौंदर्य अनूठा और मौलिक होता है। कोई किसी की तरह नहीं हो सकता। प्रशंसा घटक की नहीं होनी चाहिए बल्कि बनाने वाले की तारीफ़ बार बार होनी चाहिए। जिसने करोड़ों उपादानों की वंश परंपरा को उत्तरोत्तर बढ़ाने हेतु बीजों को अपनी एक मुट्ठी में सहेज रखा है। केतकी के फूल को देखकर उपजा ज्ञान। जय हो!!

सन्नाटेदार संघर्ष

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  "जितना बड़ा, रूखा, गहन और सन्नाटे से भरा संघर्ष, उतनी ही बड़ी और ठहरने वाली चमकदार विजय! चुनाव व्यक्ति का कि वह संघर्ष पथ से विचलित हो अपना लक्ष्य छोड़ दे अथवा गलाकर खुद को नया व्यक्तित्व हासिल करे!!" यूं ही आज किसी से बात करते हुए अपने जीवन में आए तमाम सन्नाटेदार संघर्ष याद आने लगे तो हमेशा हमदर्दी का कंधा मांगने वाला मेरा कमज़ोर मन थोड़ा भावुक हो उठा लेकिन तत्क्षण सहनशील और संघर्षधर्मी मजबूत मन ने उसे ललकार कर मुझे उक्त सुझाव दिया। अब कुछ ठीक लग रहा है।

बांस भर टोकरी

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वनिका पब्लिकेशंस द्वारा प्रकाशित कल्पना मनोरमा जी का कविता संग्रह - **बांस भर टोकरी** आनंद लीजिए इन सुंदर कविताओं का।प्ढ़ेंगे तो निश्चित ही खो जाएंगे इनकी तासीर में। बकौल कल्पना जी......... मेरे लिए कविता क्या है ? अगर पूछा जाए तो मैं यही कहूँगी कविता मेरे जीने की ख्वाहिश में ख़ुदा की बख़्शिश है। एक रक्तिम-सा अल्हड़ उम्मीदों भरा पारितोषक है जो मेरे अंतर्मन को स्निग्धिता से समृद्ध करता है। -कल्पना मनोरमा संग्रह प्राप्त करने के लिए अमेज़न का लिंक https://www.amazon.in/dp/B09X5DKYRT?ref=myi_title_dp आप चाहें तो निम्न नंबर पर संपर्क कर भी पुस्तक मंगा सकते हैं। 09837244343 -नीरज शर्मा