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सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच संवाद करती कहानियाँ

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लेखिका  : प्रगति गुप्ता   कृति     : स्टेपल्ड पर्चियाँ   प्रकाशन  : भारतीय ज्ञानपीठ   मूल्य    :  220/- हम कितने ही तीन-तोफ़ान क्यों न बाँध लें , जिंदगी से हार ही जाते हैं। और जिंदगी हमारे साथ निहत्था चलकर भी जीत जाती है। हम अपनी परम्पराओं में प्रकृति को बुनना चाहते हैं लेकिन वह अपनी परम्पराओं में स्वतंत्र है , भूल जाते हैं। हमारे और प्रकृति के बीच रस्साकसी का खेल जन्म से प्रारम्भ होकर चार काँधों पर पहुँचने पर भी विराम नहीं लेता। वैसे तो हम जन्म और मृत्यु के बीच वह सब कर लेना चाहते हैं जो हमें समझ आता है। और जब किसी बात को समझने में दिक्कत होने लगती है तब हम उसे लिखकर सहेज लेते हैं। इसी को साहित्य भी कहते हैं और रोज़नामचा भी। जो बातें हम रोज़नामचा में ये सोचकर लिख लेते हैं कि समय मिलने पर समझकर क्रियान्वित करेंगे वे ही बातें अपनी तासीर के अनुसार हमें सुख-दुःख की अनुभूति कराती हैं। ’ स्टेपल्ड पर्चियाँ ’ कहानी संग्रह की शीर्ष कहानी है। जिसमें नायिका उक्त बातों की व्यनाजनात्मक भूमिका समझने की कोशिश करके भी समझ नहीं पाती।लेकिन इंसान जो की मशीनी भूमिका में आता जा रहा है लेकिन लौह निर्ण