Posts

Showing posts from January 18, 2021

आते तुम घर काश!

Image
  चंद्र दूज का सोहना, उगता जब आकाश धरती धुनती माथ तब,आते तुम घर काश!! चांद पकड़ने को उड़े, अलग-अलग दो मित्र मिलकर साधे छोर जो, निखरा  पूरा  चित्र।। राही  उड़ते  जा  रहे ,थे  अपने   ही   रंग चंद्रहार उद्धृत  हुआ, झपटे  दोनों  संग।। अम्मा आज उदास थीं, चलो मिला उपहार भगनी-भ्राता कर रहे, ममता  को  साकार।। प्रेमी को प्रेमी मिला, प्रिया  हो  गई  साथ नारंगी नभ पर दिखे, प्रेम  पगे-से   माथ।। नत नयनन से देखती, घरनी घर की कोर कभी चमती चांद-सी, नचती मैं बन मोर ।। किरणहार जब पहनता, बनता  दुल्हा चांद नहीं छिपा रहता पड़ा,कहीं किसी की मांद।। ***

गेंदा-गेंदा मन हुआ

Image
गेंदा-गेंदा मन हुआ, तन वासंती रंग पवन  झकोरे   छोड़ते,  वैरागी मकरंद।। फूल, फूलकर कह रहे,अपना मन-अनुराग तितली ले ले उड़ रहीं, सौरभ भरा पराग।। चंचल मधुकर छेड़ते, कलियों को भर अंक। पतझड़ लेकर आ रहा, उन्मादी  आतंक।। अमरबेल भी लहक कर,करती मधुरिम शोर लेकिन लेती खींच सब, दूजे तन का ज़ोर।। डाली झुकी गुलाब की,मन में भरे विनोद  मन उदास में भर रहा ,सौरभ वाला ओद || ***