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Showing posts from May 17, 2023

बाँस भर टोकरी- एकल लोकार्पण

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समीक्षक: मित्र निशा चन्द्रा ‘बाँस भर टोकरी’ काव्य संग्रह का नाम ही इतना अद्भुत था कि किताब पकड़े-पकड़े मुझे लगा कि मैं जैसे बाँस के जंगल में खो गई हूँ। उसके बाद अपनी कल्पना में बाँस की टोकरी बुनते हुए असंख्य हाथ दिखे लेकिन जब इस संग्रह की कविताओं का पाठ किया तो लगा कि मेरी विचारी हुई टोकरी छोटी पड़ रही है। कविताएँ अपने अंतस में इतनी ज्यादा उर्वर संवेदना , अवसाद , आक्रोश को समेटने है उसके लिए सोच की टोकरी नहीं, इन कविताओं के भाव को समझने के लिए मन-बुद्धि के बहुत बड़े टोकरे की ज़रूरत थी। सैतालीस कविताएँ जो 119 पृष्ठों तक पसरी हैं, वे जैसे कविताएँ नहीं , बाँस के पतले-पतले , हरे-भरे पत्तों से बुनी हुई अद्भुत टोकरियाँ हैं. जिनमें स्त्री-पुरुष की साँझी पीर, सुख-दुःख भरा है, जिसे अब मैंने अपने मानस में सहेज कर रख लिया है।  उच्चस्तरीय शब्द सौष्ठव से पूर्ण मर्म को बेधती...पढ़ते-पढ़ते पाठक को कुछ देर को ठहर कर कुछ सोचने को मजबूर करती कविताएँ….कोई दारुण गाथा , कोई बसंत की आहट और कुछ स्त्री के आत्मिक प्रेम को मुखर करती कविताएँ पढ़ना जैसे अपने आप को पढ़ना है. अपने जीवन के अनुभवों को समक्ष पान

नदी सपने में थी - एकल लोकार्पण

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समीक्षक: मित्र निशा चंद्रा   कल्पना मनोरमा ( लेखिका) नदी सपने में थी ( काव्य संग्रह) प्रकाशन (भावना प्रकाशन ) मूल्य (250) आज फिर मेरी यानी निशा चन्द्रा की तरफ से एक और ‘एकल लोकार्पण’ होने जा रहा है। ये लोकार्पण उनकी पुस्तक का है,जिन्होंने कभी मेरे हाथ में किसी की नवप्रकाशित किताब लिए हुए तस्वीर देखकर मुझे ये सुन्दर शब्द उपहार में दिया था.....यानी कल्पना मनोरमा ने किसी की कृति पर मेरी पहल को ‘एकल लोकार्पण’ नाम दिया था।   खैर, आज कल्पना मनोरमा की काव्य कृति “नदी सपने में थी” का लोकार्पण मेरे द्वारा होने जा रहा है। “नदी सपने में थी.....” किताब का नाम ही इतना खूबसूरत कि मैं कुछ देर सोच में पड़ गई कि क्या सचमुच नदी भी सपना देखती होगी। पर मेरा आश्चर्य पुस्तक पढ़ने के बाद सम पर आ गया और पता चला कि क्यों नहीं नदी सपना देख सकती है! आखिर नदी भी तो स्त्री है। ये विडम्बना है कि स्त्रियों का आधा जीवन सपने देखने में ही निकल जाता है। ऐसा नहीं सपने साकार करने का उनमें उद्यम नहीं लेकिन पिंजरे में कैद मैना उड़ान के सपने साकार कर भी कैसे सकती है। जैसा कि कल्पना की कृति का स्वर है, अब स्त्रियों को बेचा