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सच मानिए

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चित्र - अनु प्रिया    निराशा को परे धकेल लालटेन आशा की जलाकर खुद को पहचानना शुरू ही किया था सच मानिए , मैंने चाँद को कभी पुकारा भी नहीं फिर भी वह  दौड़ा चला आया मेरी लालटेन पकड़ने जैसे उठे हुए छप्पर को उठाने दौड़े  चले आते हैं अपने  लोग।