Posts

Showing posts from April 4, 2024

शिशु के विश्वास में

Image
  वसंत से पहले हर बार मिलकर मिट्टी में लौटती हूं पेड़ के नज़दीक नहीं मिलता पेड़ वैसा जैसा छोड़ा था पतझड़ के मध्य पत्तियां सोचती हैं लालित्य अपना दिखाकर वसन्त कोमलता छीनकर पेड़ की फूलों में रस घोलता है फूल , टहनियों पर खिलते हैं पेड़ , टहनियों का पिता होता है शिशु के विश्वास में पिता बूढ़ा ही जनमता है।  

"कांपती हुई लकीरें"

जेंडर असमानता मूलक समाज में अवधारणाएं निर्धारित करते हुए स्त्री पुरुष को सहजीवन, सहयात्री या साथी के रूप में न देखते हुए एक दूसरे का विरोधी बताया गया। दोनों को वर्चस्ववादी शक्तियां हासिल करनें को उकसाया गया। समानता या साथ साथ चलकर जीवन को देखने की बात कम ही सामने आती रही और इस विद्रोहीपने से विरोधाभास घटा नहीं दुश्मनियाँ गाढ़ी होती गईं और स्त्री पुरुष युद्धरत हो गये। जो जिस पक्ष का सहगामी हुआ बढ़ा चढ़ाकर समाने वाले को नीचा, आक्रोशित, खूंखार दिखाने के लिए तथ्य खोजने लगा। एक तरफ़ रोटी कपड़ा मकान की जुगाड़ में जुटी दुनिया में अस्मिता का घमासान मच गया। सार्वभौमिक मान्यता है कि कोई भी कार्य हो या मुख से निकला शब्द अन्यथा नहीं जाता। तो जेंडर इक्वलिटी के लिए हुए कार्यों के परिणाम स्वरूप सुधार के रूप में कुछ मुठ्ठी भर स्त्रैण रौशनी हाथ आने लगी मगर लड़ाई अभी भी बाकी और जारी है..... इस दौरान विपरीत जेंडर के जीवन में झांकना जोख़िम भरा एक दुस्साहस का काम है, जिसे पूरे मन से कर लिया गया है। पुरुष संवेदना या पीड़ा पर आधारित कथा संकलन जब से प्रकाशित हुआ है, लगातार लोगों की मौखिक प्रतिक्रियाएं मिल रह

अप्रैल एक

Image
  दिन गिने जायेंगे वे भी मेरी जिंदगानी में , जिया नहीं था जिन्हें हमने , अप्रैल एक को कैसे कहें मूर्ख हम  जब होश आया हो आज ही हमको।  

शीशियाँ इत्र की

Image
  शीशियाँ इत्र की भी रहती हैं बे-खुशबू तब तक जब तक खोलता नहीं कोई उन्हें कभी कभी ही सही तुम , खुलकर हंसा करो।  

स्त्री जब हँसती है

Image
  स्त्री जब हँसती है तब पुरुष सोचता है कि स्त्री , उसके लिए हँसती है उससे प्रेम पाने के लिए हँसती है या स्त्री लंपट है इसलिए हँसती है नहीं , ये बिल्कुल सही नहीं स्त्री जब हँसती है तब वह अपनी हँसी को जीती है हँसी में खोजती है खुद को स्त्री जब हँसती है तो सिर्फ वह हँसती है अपने लिए। कल्पना मनोरमा  

स्त्री का स्थाई रंग

Image
  स्त्री का स्थाई रंग  स्त्री की पहचान रंग रंग की पहचान स्त्री दोनों अभिन्न...कहा दुनिया ने सधवा के रंग सारे विधवा की रंगहीनता अभिन्न नहीं समझ सका कोई भी समूची स्त्री का रंग टुकड़ों में विभक्त स्त्री रंगों से पहचानी जाती रही फिर भी बनी रही रंगहीन एक तिहाई स्त्री का रंग आसमानी नीला है पानी में पड़ते आसमानी रंग में रंगी स्त्री , रंगहीन ही बनी रही समुद्र में आसमानी रंग छलावा है स्त्री का कुछ अंश सिमटा रहता है इसी छलावे में स्त्री चलाती है खुद को लाल रंग के सहारे रंगों में लाल रंग प्रेम का है स्त्री दिखती है लाली-लाली प्रेम-भरी , हरी-भरी पर विषाद स्त्री का स्थाई रंग है कभी मिलेगा कोई आत्मीय उसे बताएगी जरूर स्त्री अपने मन की बात। चित्र: अनु प्रिया