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'सरोगेट मदर'

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  लेखिका निर्देश निधी  आवरण बांचना मेरे रचनात्मक मन को सुकून से भरने वाला लेखन है। किसी लेखक की सूक्ष्म कल्पना और यथार्थ से बुनी उसकी सद्य कृति को बिना पढ़े कलेवर तक पहुंचना निश्चित ही अंधेरे में तीर चलाकर लक्ष्य को भेदने जैसा दुस्साहसी कार्य है लेकिन कौतुहलपूर्ण भी। आज मेरे सामने कथाकार निर्देश निधी जी की बहुचर्चित कथाकृति "सरोगेट मदर" का आवरण सामने है। सच कहें तो मैंने अपने कॉलेज के दिनों तक "सरोगेट" शब्द को नहीं सुना था। इस शब्द का मतलब जानना तो मेरे लिए बहुत दुरूह विषय था। लेकिन इक्कीसवीं सदी के आगाज़ के साथ सरोगेसी की खबरें कहानियों के रूप में हों या अख़बारी चर्चाओं के माध्यम से तेज़ गति पकड़ती चली गईं। मातृत्व सुख पाने का ये माध्यम तब और ज्यादा तेज़ी से चमक उठा जब समाज की दशा को अपने अभिनय से जीने वाले अभिनेताओं के यहां नवनिहालों की किलकारियां गूंजने लगीं। उनके चमकदार ख़ाली मन खरीदी हुई ममता से लकदक हो उठे। बात आज के समय की अगर की जाए तो बस हाथ में पैसा होना चाहिए , बच्चे तो आ ही जायेंगे। सरोगेसी माध्यम मातृत्व विहीन नाउम्मीद दंपतियों के लिए सौगात लेकर आया