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Showing posts from August 15, 2021

इस सावन

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इस सावन   मैं   घर पर नहीं हूँ   अजंता-एलोरा की गुफाओं ने दी है आवाज़ मुझे   पत्थरों की   मुखरित कशीदाकारी में   बुद्ध स्तूप   दिख रहा है मौन    उसे देखकर   करती हूँ याद   औरतों के उन   हाथों को   जो काढ़ते हुए बेलबूटे   इन दीवारों पर   कितना बोले होंगे   बौद्ध गुफाएँ कर रही हैं   लगातर   मुझे आकर्षित   महसूस रही हूँ मैं   प्रेम   पत्थरों में     अजंता-एलोरा की गुफाओं के   सन्नाटेदार   सघन अँधेरों का   शिल्प   मेल खाता-सा दिख रहा है   स्त्रियों के दाहक अंधेरों से थरथराती है रोशनी की एक लकीर   मेरे भीतर       नक्काशीदार अलंकृत   दीवारों के   अनमोल   भित्त चित्रों को   उकेरा होगा   किसी   साधारण-सी दिखने वाली   औरत ने जिसके ठुड्ढी पर गुदा होगा   हरे रंग का गोदना जिसकी कानी ऊँगली का   नाख़ून   घिस गया होगा   छैनी-हथौड़ी के रख-रखाव में     अश्वनाल घाटी को घेर रखा है   हरे-भरे गहरे जंगल ने इस वन को जुनून है सिर्फ   उगने का इसलिए उगे जा रहे है   इसके हृदय में अभी भी जीवित हैं   उन तीस चट्टानों की चीखें   जो बहुत तड़पने के बाद   बदली थीं   बौद्ध गुफा स्मारक में     एलोरा की हरियाली देखकर    याद