दुःख का बोनसाई

"हलो निक्की..! क्या सो रही हो ?" "नहीं तो…। आप बताओ…! आप क्यों जाग रही हो माँ ?" “हम क्या सोच रहे हैं…?” “बोलो ..…?” “दामादजी और बच्चों को लेकर दीवाली में तुम घर चली आओ।" "माँ…! इतनी रात में आप ये सब सोचने बैठी हो…?" “उसमें रात क्या..! हम सही सोच रहे हैं…।” “सब कुछ जानते हुए भी…?” निकिता उठकर बरांडे में घूम-घूमकर बात करने लगी। "हाँ, तुम चली आओ। जब तक हम हैं। मेरे बाद जैसा मन हो, करना…...