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Showing posts from October 17, 2020

आँसू बहाने वाली चिड़िया

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वह भाग रही थी तुड़वाकर रस्सी कई जन्मों से   आधे अपंग जीवन की तपस्या का ही  फल थी  उसके दौड़ने की सहज-सुगम स जगता  भरी रफ़्तार  मैदे जैसी मिट्टी से भरे रास्ते पर पतझड़ के पत्ते-सी लुढ़क रही थी वह  आनन्द की  सूजी   मुंदी   पलकें लिए   किन्तु वह महसूस रही थी अपना समूचा वजूद  उसमें  उसे देखकर यूँ मन में फ़ूला-फ़ूला   फूल पड़ीं थी सूखीं लताएँ बेमौसम हवा लटक-लटककर डालियों पर गा रही थी बरसात में वसंती गीत उसके लिए  हिमालय की चोटियों ने कर दिया था बर्फ़ का सीना चाक अचानक दहाड़ने की आवाज़ें पसरने लगी शांत वातावरण की धड़कन भेदती हुई  उसके इर्दगिर्द  सूखी पुलिया के कानों से फूट पड़ा  गर्म जल का सोता  सिकुड़ गये  चौड़े रास्ते  कछुए-से अपने भीतर  माँ की गोद में बिलख पड़ा दुधमुँहा किसी बीज में अँखुआया था जो पल  लौट गया  बीज की आत्मा की ओर   उसके पीछे दौड़ती-हाँफती  भीड़ में से  चिल्लाया था फिर कोई " जिसके हाथ लगे  पकड़ लेना मज़बूती से उसको किसी भी कीमत पर भागने न पाए" किसको पकड़ा जाएगा ? किसने  कहा था ये अधम वाक्य? किसकी रस्सी थी जो टूट चुकी थी ? और कौन था जो तुड़वाकर भाग रहा थ