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दिव्या माथुर की कविताओं में मानवीय चेतना के संघर्षों की आँच

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कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में एक स्थापित हस्ताक्षर दिव्या माथुर समकाल की चर्चित कवयित्री भी हैं। नई कविता की टकराहटें हों या छंदबद्ध गीतों की मधुर तानाकशी, छोटी बड़ी बहर की ग़ज़लें या नज़्में , उनके अपने मौलिक व भावनात्मक बिम्ब-प्रतीक पाठक-मन को सहजता से आंदोलित करने में सक्षम हैं। उनके सात कविता संग्रह: ‘अंतःसलिला’,’रेत का लिखा’, ’ख़याल तेरा’, ‘11 सितम्बर: ‘सपनों की राख तले’, ’चंदन पानी’, ‘झूठ, झूठ और झूठ’, ‘हा जीवन हा मृत्यु’ (ई-संग्रह) और ‘सिया-सिया’ ( बाल -कवितायें) जैसी कृतियों में संग्रहित कविताओं को पढ़कर खुरदुरे यथार्थ के सत्य को आच्छादित होते हुए देखा और महसूस किया जा सकता है।  जिस प्रकार ज्ञान-कर्म-अर्थ हमारे अन्न हैं। उसी प्रकार कर्म का मौलिक रूप गति तत्व होता है। इसी के द्वारा निर्जीव व सजीव दोनों तत्वों के जीवित रहने का बोध जिस प्रकार साधारण इंसान को होता है, उसी प्रकार कवि को लगातार होता रहता है। किसी के द्वारा कविता करना माने अपने बाहर-भीतर जमी कठोरता को त्याग देना होता है। इतना भावपूर्ण कार्य, भावनाविहीन व्यक्ति कर ही नहीं सकता। कविता की गुणवत्ता पहचानने वाले से पूछो तो