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मिथ्या भ्रम टूटें सभी

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  चित्र- पारुल तोमर  क्या माँगें माँ माँगना , क्या साधें जो पास मिथ्या भ्रम टूटें सभी , यही हृदय की आस।।   हवा भरी है गंध से , चित्त भरा है राग है सामग्री हवन की , नहीं पास में आग।।   समता-ममता खो चुकी , खाली उर आगार   दाँव खोजते एक बस , गिरगिट-सा व्यवहार।।   सांध्य की आगोश में , छिप जाता जब सूर्य पीड़ा अतिभर टीसती , बजता दुःख का तूर्य।।   पत्थर के परिवार को , सींचा भर-भर नेह बदले में पाया सदा , धोबी के कर रेह।।   गंगा की अवतार माँ , मैं नदिया की धार पानी दोनों एक रंग , मिल पा जाऊँ पार।।   भ्रम में भूला दिन फिरा , काटी डर-डर रात पौ फटते ही बोलता , झूठी -साँची बात।।   गिरा आचरण कूप में , बचा सिर्फ़ व्यभिचार अपने आगे समझते , संस्कृति को लाचार ।। ***