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Showing posts from May 31, 2022

प्रेम और दुःख का मिला-जुला संगीत-दयानंद पांडेय जी

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  प्रेम और दुःख का मिला-जुला संगीत दयानंद पांडेय कुछ लोग कथा में कविता सा लिखते हैं। कल्पना मनोरमा कविता में कथा कहती हैं। कविता में कथा को पगते हुए , देखना हो तो कल्पना मनोरमा की कविताएं पढ़िए। कल्पना मनोरमा की कविताओं से गुज़रिए। कविता में कथा के तंतु वह ऐसे रोपती हैं जैसे बारिश में कोई भीगे और अपने प्रेम को याद करे। याद करे अपना प्रेम और अपनी प्रेम कथा में डूब जाए। प्रेम बरसने लगे। अबाध प्रेम। मनोरम प्रेम। झूम कर लिखती हैं कल्पना मनोरमा। कोमलता का नमक चखती उन की कविताएं मांसल भी हैं और दूब की तरह नरम भी। ओस की तरह छलकती हुई लेकिन पत्ते पर चमकती हुई टिकी हुई। ऐसे की ज़रा सा छूते ही लरज कर गिर जाएं और आप प्यासे रह जाएं। यह प्यास ही कल्पना मनोरमा की कविताओं में कोयल की तरह कूकती हुई गाती मिलती है। जैसे दुन्नो का प्रेम पथ रच रही हों और गा रही हों , दुन्नो की दारुण गाथा। पथरीले उरोजों का टटका बिंब रचती कल्पना मनोरमा की कविताएं दिखने में सादी लगती हैं पर हैं नहीं। गंभीर अर्थ लिए , महीन भाव-भंगिमा में औचक सौंदर्य का रथ लिए प्रेम के सुनसान पथ पर उपस्थित किसी चंचला नदी की तरह भौंचक कर देती

"बाँस भर टोकरी" पर निर्देश निधि जी की समीक्षा

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अनोखा नाम अनोखा कविता संग्रह कवर बाँचने वाली कवयित्री के कवर पर चित्र में ही सही , पर मैं भी । यह एक ऐसा काव्य संग्रह है जिसकी रचनाकार अपने द्वारा देखी सुनी , जी हुई ज़िन्दगी की छटपटाहटों को कविताओं में ठीक से निरूपित कर पाने के लिए चिंतित है या किसी मूक उर की वेदना को बिना जजमेंटल हुए होलसेल में कह पाने के लिए व्याकुल है। बहुत ही प्यारी बात कही है कल्पना जी ने। कल्पना जी अपनी कविता में संकलित अधूरी , बेकार संवेदनाएं , जिन्होंने न जाने कितने पलों का चैन छीनकर उनके उदार मन को सोने नहीं दिया। वे सोचती हैं क्या वे तमाम घायल पलों की भावनाओं को कविता के अंतस में संजो पाई हैं। उनके अनुसार वे नहीं जानतीं कि काल की उजली कलुषता और विपणन कालखंड का आक्रोश , जो शब्द याचिकाओं के रूप में उनके आंतरिक भावनात्मक मलबे तले दबा पड़ा था , क्या उससे पूरा का पूरा छुटकारा मिल सका है उन्हें ? इस बात की चिंता में वे रत है। वे कविता की चौहद्दी को बहुत विराट मानती है और अपने कदम को बहुत छोटा चींटी से भी छोटा मानती हैं। परन्तु उनके मानने से आगे उनकी कविताएं उन्हें कहीं बड़ा साबित करती हैं। उनकी अर्थपूर्ण सारगर्

"बाँस भर टोकरी" पर डॉ. अजय शर्मा जी की समीक्षा

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  फेसबुक एक ऐसा माध्यम है , जो आभासी होते हुए भी अपना लगता है। यहां कोई किसी को नहीं जानता , लेकिन फिर भी पहचान रखता है। फेसबुक पर आपको अपने भी मिलते हैं , प्रेम भी मिलता है और झगड़े भी देखने को मिलते हैं। जब हम छोटे थे तो पेन फ्रेंड का चलन था। युग बदला और नया दौर आया जिसमें क्रांति के रूप में फेसबुक हमारे सामने है। कल्पना मनोरमा जी कौन हैं , क्या करती हैं , मैं नहीं जानता। लेकिन एक बात अच्छी तरह से जानता हूं कि वह लेखकों की किताब के टाइटिल की ईसीजी बहुत ही बेहतर ढंग से करती हैं। एक रिश्ता फेसबुक ने बना दिया है , जिसका नतीजा है कि उनका कविता संग्रह मेरे हाथ में है। पहले तो उनका दिल से शुक्रिया कि उन्होंने मुझे किताब भेजी। स्थूल से सूक्ष्म तक की यात्रा करती कविताएं बात करता हूं कल्पना मनोरमा जी की कविता की नई किताब "बांस भर टोकरी" की। जब फेसबुक पर इसका पहली टाइटिल देखा तो नहीं समझ पा रहा था इसका मतलब। लेकिन पढ़ने के बाद पता चला कि इस टोकरी में जितने भी बांस भरे गए हैं , वे केवल बांस भर टोकरी नहीं , बल्कि वे सभी बांसों को इस तरह से तराशा गया है कि सारे बांस अपना आकार ले गए