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भानुपुरा की लाडली बेटी- "मन्नू भंडारी"

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प्रसिद्ध कथा लेखिका मन्नू भंडारी  संसार अपनी धुन में लगातार चलते हुए मारक पदचिह्न छोड़ता चलता है। जिस रास्ते को वह तय कर लेता है , उस पर कभी मुड़कर नहीं देखता। न ही किसी चट्टान पर बैठकर ये प्रतीक्षा करता है कि कोई प्रबुद्ध-समृद्ध व्यक्ति आकर उसके पाँव की छाप लेकर धरोहर के रूप में सुरक्षित कर ले। लेकिन इस सबके बावजूद भी सब कुछ लिखा जाता है। कोई है , जिसके इशारे पर हवा चलती है और सूरज दहकता है। उसके यहाँ जितना हाथी का मोल है , उतना ही चीटीं का। जितनी बरगद की आवश्यकता है , उतनी ही छुईमुई की ज़रूरत है। कहने का मतलब जो कुछ भी पृथ्वी पर क्रियात्मकता के साथ घट रहा होता है , उसको कलमबद्ध करने का काम लिपिक स्वयं करता चलता है। तो फिर इस संसार का लिपिक है कौन ? जब सवाल उठा तो पता चला कि संसार का लिपिक और कोई नहीं काल स्वयं है। वही उसके निहोरा घूमता है , या हो सकता है कि संसार स्वयं अपने लिपिक के प्रति निहोरा हो! कुछ भी कहा नहीं जा सकता है। लेकिन एक बात पक्की है कि कला और काल को कोई मात देकर यदि बाँध लेता है , वह और कोई नहीं , जाग्रत चेतना का लेखक ही होता है। लेखक अपनी तीक्ष्ण बुद्धि और संवेदना से