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Showing posts from January 13, 2021

पर्वतों पर बैठ मालिक

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  आस है उस धूप की जो दूर बिखरी है।।   साँस रोके भेड़ ठिठकी, सर्द घाटी में जम रहा है रक्त उसका नवल काठी में   घास भी जो नर्म थी,  उस ओर छितरी है।।   बुन रही किरणें झिंगोला बर्फ़ में छिपकर  किन्तु पाए भेड़ कैसे झूल को बढ़कर   जगह उसकी समझ में, वही निखरी है।।   संवाद करता नहीं , सीटी बजाता है पर्वतों पर बैठ मालिक गुनगुनाता है    महसूस पाई बात जब, तब बहुत अखरी है।।   ***