तकनीकी धुँध में मनुष्यता
"तकनिकी धुंध में मनुष्यता” लेख उस अदृश्य खामोशी की पड़ताल करता है, जो तकनीक की चकाचौंध में हमारे भीतर घर कर गई है। यह एक आत्ममंथन है, जहाँ स्क्रॉलिंग की उँगलियाँ तेज़ होती जा रही हैं, लेकिन संवेदनाएँ मद्धम। सवाल यह नहीं कि मशीनें कितनी आगे बढ़ गई हैं, बल्कि यह है कि मनुष्य अपने भीतर कितना पीछे छूट गया है। क्या हम अब भी मनुष्य हैं, या सिर्फ डेटा और ट्रेंड का हिस्सा? यह लेख उसी प्रश्न को उजागर करता है… जनसत्ता अख़बार और अनुक्रम पत्रिका में प्रकाशित 28जुलाई 2025 जनसत्ता के संस्करण में प्रकाशित आज की तकनीकी प्रगति ने मनुष्य को जितनी सुविधाएं दी हैं, उससे ज्यादा उसके भीतर की संवेदना और आत्मानुभूति को भौंतरी बना दिया है। मानो मनुष्य अपने ही भीतर से निर्वासित हो चुका है और उसे पता भी नहीं चला। वक्त की खुली चेतावनियों के मध्य यदि...