Posts

Showing posts from July 31, 2025

तकनीकी धुँध में मनुष्यता

Image
"तकनिकी धुंध में मनुष्यता” लेख उस अदृश्य खामोशी की पड़ताल करता है, जो तकनीक की चकाचौंध में हमारे भीतर घर कर गई है। यह एक आत्ममंथन है, जहाँ स्क्रॉलिंग की उँगलियाँ तेज़ होती जा रही हैं, लेकिन संवेदनाएँ मद्धम। सवाल यह नहीं कि मशीनें कितनी आगे बढ़ गई हैं, बल्कि यह है कि मनुष्य अपने भीतर कितना पीछे छूट गया है। क्या हम अब भी मनुष्य हैं, या सिर्फ डेटा और ट्रेंड का हिस्सा? यह लेख उसी प्रश्न को उजागर करता है… जनसत्ता अख़बार और अनुक्रम पत्रिका में प्रकाशित 28जुलाई 2025 जनसत्ता के संस्करण में प्रकाशित                                                                           आज की तकनीकी प्रगति ने मनुष्य को जितनी सुविधाएं दी हैं, उससे ज्यादा उसके भीतर की संवेदना और आत्मानुभूति को भौंतरी बना दिया है। मानो मनुष्य अपने ही भीतर से निर्वासित हो चुका है और उसे पता भी नहीं चला। वक्त की खुली चेतावनियों के मध्य यदि...

प्रेम, विद्रोह और आत्मानुभूति की प्रतीक: मीरा बाई

Image
प्रेम, विद्रोह और आत्मानुभूति की प्रतीक: मीरा !                                                             – कल्पना मनोरमा "लाज रखो गिरधारी" शीर्षक से ही भक्ति की उस पुकार की अनुगूँज सुनाई देती है, जो मीरा की आत्मा से उठी थी। यह पुस्तक सिर्फ कृष्ण भक्ति का दस्तावेज नहीं, बल्कि प्रेम, समर्पण और आत्मा की स्वतंत्रता का जीवंत आख्यान है।    मीरा, एक ओर भक्तिन हैं, तो दूसरी ओर एक ऐसी स्त्री, जो अपने समय की सीमाओं को लांघकर अपने ईष्ट से संवाद करती है, बेलौस, निर्भय और संपूर्ण निष्ठा के साथ। मीरा का कृष्ण केवल मुरलीधर नहीं, बल्कि वे प्रेम और चेतना का वह प्रतीक हैं, जिनसे वह बराबरी पर संवाद करती हैं, शिकायत करती हैं, हठ करती हैं, और अंततः उन्हीं में विलीन हो जाती हैं। "लाज रखो गिरधारी" उन लेखों-निबन्धों का संग्रह है, जो प्रेम के एकांत और भक्ति में डूबकर लिखे गये हैं. भक्ति जब अपने सच्चे रूप में होती है तो वह प्रेम ही कहल...