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कोई खुशबू उदास करती है

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"आओ आवरण बाँचें" में नीलिमा शर्मा की कृति "कोई खुशबू उदास करती है" मेरे सामने है। हम कितनी ही कोशिश क्यों न करें, चीज़ों के रूप के पीछे हम वास्तविकता को नहीं पकड़ सकते। इसका भयानक सा कारण ये हो सकता है कि चीज़ों के अनुभव से अलग उनकी कोई अलग वास्तविकता नहीं…! आस्कर वाइल्ड सच ही तो है इस जड़ जगत में ऐसी बहुत सी चीज़ें हैं जो निराकर होते हुए भी अपने सहज क्रम में घटित होती रहती हैं। लेकिन लगता हमें ये है कि कुछ अघटा सा अचानक घटकर हमें उत्साहित या प्रफुल्लित कर खुशी से भर गया है। जबकि इसका एक लंबा प्रॉसेस होता है। कितनी बार हम अपनी थकान को ठंडी जमीन पर बिना किसी इलाज़ के ठीक कर लेते हैं। और कई बार पीड़ा का सिंदूर ऐसा छितराता है कि धोए नहीं छूटता। ऐसा भी लगता है कि हम तो खुशी से बताशा हुए जा रहे थे लेकिन न जाने कहाँ से एक उदास खुशबू का झौंका बेदम आया और बेहद सावधान होने के बावजूद हमारा सारा उत्साह छीन कर उड़नछू हो गया। और हम निरुपाय निरीह अशांत से बस अपनी जाती हुई ताज़गी को ओझल होते देखते रह जाते हैं।  यहां पर लेखिका यदि "कोई बदबू" कह देती तो समझ की सारी पेंचीदग