Posts

Showing posts from August 8, 2021

जलक्रीड़ा

Image
ऐसा नहीं  स्वाद उसका भी बिगड़ता है   वह भी परखती है स्वाद अपना  थोड़ा-सा साबुन चख कर उतर जाती है जब साबुन की तैलीय तिक्त गंध   उसके नथुनों से होते हुए  जिस्म में   वह लोहे की बड़ी बाल्टी में भरे  काई लगे जल में  डुबो देती है अपनी परछाईं  जब तक धोती है वह  दिन-रात के गहरे दागों को अपने शरीर से  उसकी परछाईं करती है जलक्रीड़ा.

सब्ज़ीवाला

Image
सब्ज़ीवाला आया था  ठेली भरकर   ताज़ी सब्ज़ी लाया था  हरे-भरे धनिया के साथ   मुँह बंद किये  कुछ गोभी सोये भी थे  उसकी ठेली पर  आँख पनीली करने वाली   मिर्ची सुइया थी उसकी थैली में   सब्ज़ी ले लो! आवाज़ भी लगाता है  रोज ही सब्जीवाला  इस  झुग्गी बस्ती में आता है  झुग्गी का दरवाज़ा खुलता भी है   कला लपक कर उसकी ओर बढ़ती भी है  हरा धनिया और नींबू  आहा!  पनीला चटकारा लगाकर  वह कहती भी है     किन्तु  उसकी डलिया चुनती है   सिर्फ़ बूढ़ी खाल वाले  चार आलुओं को  सब्ज़ी वाला चला जाता है  कम आमद के साथ कल फिर आने को  कला खोलती भी है बटुआ कल के लिए  पर चुनाव जानता है अपना कर्तव्य  कल भी चुनेगा वह  सिर्फ चार आलुओं को   कला की रसोई के लिए  बंद कर मुँह बटुए का  चली जाती है कला  सेंकने ख़ुद को तवे पर  बिना नमक .