Posts

Showing posts from June 2, 2020

रूल ऑफ प्राइवेसी

Image
आवली के घर में गेस्टरूम की रिपेयरिंग का काम ज़ोरों पर चल रहा था । हेती-व्यवहारी आने की बात कहते तो मौरंग,गिट्टी और सीमेंट का पसारा पसरा है । बताकर छुट्टी पाती। लेकिन आज आवली के पति ने उसको बताया कि दीदी का फोन आया था। वे आजकल में हमसे मिलने घर आना चाहती है । सुनते ही आवली भड़क पड़ी - "आपने क्या कहा ?" "मैंने , वही, तुम्हारी वाली बात ही उनसे कही कि घर में छीछालेदर फैली पड़ी है, थोड़ा रुककर आतीं...।" "तो फिर क्या बोलीं ? आपकी दीदी!" "बोलना क्या...सही तो कहा दीदी ने कि वे क्या मेहमान हैं इस घर में ?मैं बाहर...।" पति ने थोड़े रौब से कहा । "सो व्हाट ? हम क्या उन्हें अपना कमरा...।" आवली ने तर्कपूर्ण ढंग से आँखें तरेरी तो पति ने ही शांत रहने में भलाई समझी और "अच्छा ठीक है,मैं दीदी से कुछ कह दूँगा।" कहकर बात रफादफा की। पति ने अभी पीठ फेरी ही थी कि आवली का फोन बज उठा "बेटी पम्मी कॉलिंग" देखते ही उसका मन मोर की तरह नाच उठा । उसने झट से फोन उठा लिया। "बोल बेटा क्या हाल है तेरा और मेरी बिट्टो कैसी है ?"

लड़कियाँ

Image
लड़कियाँ कुछ सोचती रहती हैं और कुछ देखती रहती हैं लगातार अपने सिर के ऊपर नीले आसमान पर बिन बुलाए चाँद को चुपके से उतरते अपनी छत पर पकड़े धवल चाँदनी का हाथ लड़कियाँ नहीं चिढ़ती हैं देखकर चाँदनी के साथ अपने चाँद को वे हँसकर ले लेती हैं अपने भर चाँदपन उस गोरे चाँद से जो छलिया है फिर आता है सूरज लिए मुट्ठियों में गेरुआ रंग लड़कियाँ दूर से महसूसती हैं उसका सुनहरापन अपने अबूझे अँधेरे में कहने को रातरानी भी बिखेरती है खुशबू जी भर रोज ही रात के दामन में लेकिन लड़कियों से पहले पहुँच जाती है वहाँ चंचल हवा अधिकार जमाने लड़कियाँ सब कुछ छोड़कर हवा के लिए ले लेती हैं खिलन उन फूलों से जो कुछ क्षणों के मेहमान हैं इस धरती पर ऐसे ही क्षितज की मुँड़ेर पर उड़ते कतारबद्ध परिंदे भी बन जाते हैं हमराज़ लड़कियों के उनकी उड़न में महसूस कर लेती हैं वे खुद कोऔर मना भी लेती हैं अपनी काया को चाहरदीबारी के भीतर बनी रहने के लिए लेकिन परवाज़ मन फुसफुसाता है उनसे कानों में चुपके-चुपके वह कहता है छलाँगने को घुटन और अंधकार की सीलन भरी साँसों से बाहर विराट खुले में कहते-कहते वह चीखने लगता है कि जिंदगी घुटने टेकने का

प्रथम का द्वंद्व

Image
पहला शब्द जितना महत्वपूर्ण होता है,उतना ही धुकधुकी  भरा भी होता है। एक स्त्री जब पहली बार माँ बनती  है तो उसके मन को एक नहीं कई आशंकाएँ घेरे रहती हैं जैसे क्या उसका प्रशव सुरक्षित होगा? क्या उसके पेट में पल रहे शिशु के समस्त अंग दुरुस्त होंगे ? क्या शिशु संवेदनशील होगा? क्या वह माँ की भाँति दिखेगा या पिता की भाँति? क्या आने वाला बच्चा कुल का रक्षक होगा या विध्वंशक ? क्या वह हमारी कुल परम्पराओं का वाहक बनेगा ? क्या बुढ़ापे की लाठी बनेगा ? क्या मानवीय गुणों से युक्त होगा? इतना सब सोचने के बाद भी माँ प्रथम  के बारे में सोचना बंद नहीं करती है।  जब ऊपर लिखी बातों के लिए दिन -रात देवी-देवता मना-मना कर मन को पुख़्ता कर लेती है और उसे लगने लगता है कि उसके द्वारा की गईं प्रार्थनाएँ परमात्मा ने पूर्णरूपेण सुन भी ली हैं और पूरा भी कर देगा।  तब वह कुछ और नया सोचना शुरू करती है ।अब उसकी नजर जाती है अपने और पति के बचपन की ओर । छानबीन पूरी होने के बाद अब बारी आती है ,सपने पूरे करने की ।जितने-जितने खड्डे या रिक्त स्थान जो उसने अपने होने से नहीं भर पाए थे ,उसके लिए प्रार्थनाएँ आरम्भ हो जाती है