रूल ऑफ प्राइवेसी


आवली के घर में गेस्टरूम की रिपेयरिंग का काम ज़ोरों पर चल रहा था । हेती-व्यवहारी आने की बात कहते तो मौरंग,गिट्टी और सीमेंट का पसारा पसरा है ।
बताकर छुट्टी पाती। लेकिन आज आवली के पति ने उसको बताया कि दीदी का फोन आया था। वे आजकल में हमसे मिलने घर आना चाहती है ।
सुनते ही आवली भड़क पड़ी - "आपने क्या कहा ?"
"मैंने , वही, तुम्हारी वाली बात ही उनसे कही कि घर में छीछालेदर फैली पड़ी है, थोड़ा रुककर आतीं...।"
"तो फिर क्या बोलीं ? आपकी दीदी!"
"बोलना क्या...सही तो कहा दीदी ने कि वे क्या मेहमान हैं इस घर में ?मैं बाहर...।" पति ने थोड़े रौब से कहा ।
"सो व्हाट ? हम क्या उन्हें अपना कमरा...।"
आवली ने तर्कपूर्ण ढंग से आँखें तरेरी तो पति ने ही शांत रहने में भलाई समझी और "अच्छा ठीक है,मैं दीदी से कुछ कह दूँगा।" कहकर बात रफादफा की।
पति ने अभी पीठ फेरी ही थी कि आवली का फोन बज उठा "बेटी पम्मी कॉलिंग" देखते ही उसका मन मोर की तरह नाच उठा । उसने झट से फोन उठा लिया।
"बोल बेटा क्या हाल है तेरा और मेरी बिट्टो कैसी है ?"
"मम्मा हम सब ठीक है लेकिन आपकी बिट्टो जिद लगाए बैठी है कि उसको नानी के घर जाना है।"
"तो इसमें इतना सोचना क्या ? तेरा ही घर है । कभी भी आओ-जाओ पम्मी ।"
"अच्छा ठीक है मम्मा, मैं तैयारी करती हूँ ।"
"हाँ ठीक है आ जा ।" कहते हुए आवली सीधे बेटे के पास चली गई । देखा पति भी वहीं अख़बार पढ़ रहे हैं लेकिन वह बेटे की ओर मुखतिब होकर ही बोली ।
"सुन हितेन ! कल तेरी दीदी और जीजा जी आ रहे हैं।"
"ओ गॉड अभीSS ऐसी सिचुएशन में ?"
"हाँ अभी, तो क्या हुआ ? अपने घर आ रहे हैं और बहू भी अपने मायके…।"
"सो व्हाट ? तो क्या मैं उन्हें अपना कमरा...कभी नहीं ?"
माँ को बीच में ही टोकते हुए बेटा बोल पड़ा ।
आवली ठगी-सी कभी पति का चेहरा देखती तो कभी बेटे का लेकिन तर्कपूर्ण शब्द होठों पर जड़ हो चुके थे ।
-कल्पना मनोरमा

Comments

  1. बहुत कम शब्दों में बहुत गहरी बात कह दी आपने ।

    लिखती रहें । शुभकामनाएं आपको

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  2. सारगर्भित रचना..!

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