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Showing posts from July 30, 2025

"एक दिन का सफर" कथा संग्रह पर आई टिप्पणियाँ

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टिप्पणीकार जयराम सिंह गौर  मानवीय जीवन की वेदना को उकेरती कहानियाँ ( समीक्षा प्रेरणा पत्रिका में प्रकाशित हो चुकी है )        कल्पना मनोरमा अब न केवल कथाकार अपितु एक साहित्यकार के रूप में स्थापित हो चुकी हैं। उन्होंने अपनी साहित्यिक यात्रा कविता से प्रारंभ की और लगभग साहित्य की हर विधा में लेखन कर रही हैं। कल्पना मनोरमा लीक से हटकर सोचने और रचने वाली लेखिका हैं। अभी हाल ही में उन्होंने पुरुष विमर्श पर दो कहानी संग्रह ‘‘कांपती हुई लकीरें’’ और सहमी हुई धड़कने’’ का संपादन किया है। जो वर्तमान में समाज के उस हिस्से का दुःख बयान करता है, जिसे सदियों वे शक्तिशाली और क्रूर माना जाता रहा है। खैर! अब बात उनके सद्यः प्रकाशित कथा संग्रह ‘‘एक दिन का सफर” की, जिसे नई किताब प्रकाशन समूह के अनन्य प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। इस संग्रह में बारह विविधवर्णी कहानियाँ हैं जो 152 पृष्ठों में समाहित हैं।   इस कथा संग्रह के फ्लैप पर वरिष्ठ कथाकार जयशंकर द्वारा लिखी टिप्पणी का एक अंश उद्धृत करना चाहूंगा,‘‘कहानियों में इधर की स्त्रियों के जीवन की प्रताड़नाओं को नए संदर...

कहानी संग्रह "एक दिन का सफ़र" से लेखक की बात

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   मानव सभ्यता के चिह्न अपनी भव्यता और समान्यता के साथ समय-शिला पर अंकित रहते हैं। भले ही हम उन्हें पढ़ सकें या नहीं, लेकिन जो कुछ भी आकाश से झरता है, उसे धरती सहेज लेती है। मानवीय दुनिया एक अबूझ, अकल्पित दुनिया है। दुःख…? इच्छित वस्तु प्राप्त न होने से उत्पन्न भाव ही दुःख है। जीवन हम में नहीं, हम जीवन में रहते हैं। और जब तक जीवन में हम रहते रहेंगे, किस्से–कहानियाँ बनती रहेंगी। हर किसी के पास अपनी एक मौलिक कहानी होती है। कोई उसे मौखिक रूप में कहकर मन का बोझ हल्का कर लेता है, तो कोई उसे लिख देना चाहता है ताकि अगली पीढ़ियाँ मानवीय अनुभवों से दो-चार होने से पहले सजग हो सकें। साहित्य लेखक और पाठक दोनों की आत्मिक चेतना को जाग्रत कर जीने की राह दिखाता है। जब कोई व्यक्ति लेखन के भाव में रम जाता है, तब उसकी आत्मा धीरे-धीरे लेखक में परिवर्तित होने लगती है, और तब लिखे बिना चैन नहीं आता। लेखन एक संश्लिष्ट जिजीविषा है, जो उत्तरोत्तर बढ़ती जाती है। मानवीय आंतरिक उद्वेग को अभिव्यक्त करने का माध्यम लेखन के अतिरिक्त और क्या हो सकता है? मेरी लेखकीय यात्रा शायद सदियों से रही हो क्योंकि जी...