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Showing posts from December 19, 2020

क्योंकि

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  पर्वतारोही ने जैसे ही  छुआ  चोटी को  विसर्जित  होने लगा उसमें  चढ़ने का भाव वह खोजने लगा ढलान चोटी के नुकीलेपन पर टिके रहना  बाक़ी था  अभी भी  सीखना  ऊँचाई के जादू में  मन की  घाटियों को  बरक़रार बनाये रखना  अभी शेष था वह उतरने लगा  अपनी कुण्डलनी में  और  बचा रह गया  बच्चे ने सीखी गिनती सौ तक वह बढ़ गया आगे सीखने लगा फ़ॉर्मूला गणित का  कुछ नया सीखने के लिए करती रही  प्रतिभा बेचैन  उसे  वह जिज्ञासुओं की तरह  सीखता गया  कुछ नया, कुछ अलग  और विद्यार्थी बचा रह गया जीवित  मनुष्य के भीतर चिड़िया ने जुटाए  तिनके  बुना  घोंसला  सहे  जमाने भर के दर्द  जन्म दिया ख़ुद को  बच्चों के रूप में  फिर एक दिन चुग्गा लेने उड़ी वह बच्चों ने  छोड़ दिया  घोंसला  लौटकर ठिठकी वह  डाली पर  दो घड़ी  फिर खो गयी चिड़िया खुद में  विछोह ने भर दी  नई बुनन की तलाश उसमें  चिड़िया बची रह गयी  चिड़या में भोर ने जगाया  सभी को  चिंतन, चिंता और खुशी के छोरों को पकड़ाया सोते-जागते के हाथों में बन गयी दोपहर दोपहर जुटाती रही कच्चा-पक्का जीवन  और बन गयी शाम  शाम ने बिना कुछ किये  पुका