क्योंकि
पर्वतारोही ने जैसे ही छुआ
चोटी को
विसर्जित होने लगा उसमें
चढ़ने का भाव
वह खोजने लगा ढलान
चोटी के नुकीलेपन पर टिके रहना बाक़ी था
अभी भी
ऊँचाई के जादू में मन की घाटियों को
बरक़रार बनाये रखना
अभी शेष था
वह उतरने लगा
अपनी कुण्डलनी में और
बचा रह गया
बच्चे ने सीखी गिनती सौ तक
वह बढ़ गया आगे
सीखने लगा फ़ॉर्मूला गणित का
कुछ नया सीखने के लिए
करती रही प्रतिभा बेचैन उसे
वह जिज्ञासुओं की तरह सीखता गया
कुछ नया, कुछ अलग
और विद्यार्थी बचा रह गया जीवित
मनुष्य के भीतर
चिड़िया ने जुटाए
बुना घोंसला
सहे जमाने भर के दर्द
जन्म दिया ख़ुद को
बच्चों के रूप में
फिर एक दिन चुग्गा लेने उड़ी वह
बच्चों ने छोड़ दिया घोंसला
लौटकर ठिठकी वह
डाली पर दो घड़ी
फिर खो गयी चिड़िया खुद में
विछोह ने भर दी
नई बुनन की तलाश उसमें
चिड़िया बची रह गयी
चिड़या में
भोर ने जगाया
चिंतन, चिंता और खुशी के छोरों को
पकड़ाया सोते-जागते के हाथों में
बन गयी दोपहर
दोपहर जुटाती रही कच्चा-पक्का जीवन
और बन गयी शाम
शाम ने बिना कुछ किये
पुकारा रात को
रात ने पसारा चैन अपने आँचल में
और सपने बन उतर गयी
अधूरी रात आँखों में
भोर का छोर पकड़े-पकड़े
समय की इसी गुंजलक में
बचे रह गए हम
जीवित
लड़की ने जन्म लिया
अनेकों रिश्तों को चली आयी लिए
बन्द मुट्ठियों में
बुना पिता का घर
पति का घर सृजित किया
और चली गयी अतृप्त यात्रियों-सी
दुनिया से
स्त्री के इसी अधूरेपन में
बची रह गयी
पूरी सृष्टि
अधूरे होने में खेद ज़रूर है
साथ में कर्म करने का उल्लास है
पूरे होने की आस की गमक है
पूरा होना
मोक्षित होना है
जहाँ न सुख है, न दुख है
इसलिए
चित्रकार को अपने अधूरे चित्र पर
अफ़सोस करना मना है
क्योंकि
जब तक रहेगा चित्र अधूरा
दमकता रहेगा जीवन उसमें
अधूरा होना
पूरे होने की ओर बढ़ना है
यानि कि जीवित बने रहना है |
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