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माँ! तुम मुझमें ज़िन्दा हो

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  ये श्राद्ध वाले पुरखों को स्मरण करने के दिन हैं। मैंने स्वतंत्रता और स्वच्छंदता की महीन विभाजित रेखा को समझने वाली , स्वतंत्रता को संबल देने वाली और अपने सम्पूर्ण स्त्रीत्व को दृढ़ता से सहेजने वाली माँ को याद कर मानो उनकी संगत का सुख ले लिया है। आप जहाँ हों , स्नेह करने वाले लोगों से घिरी हों प्रिय माँ! आपकी सदा ही जय है ❤️ आप अगर ये कहते हैं कि आज के समय में ही स्त्री जागरूक हुई है , तो ऐसा भ्रम मत पालिए जनाब! स्त्रियाँ सदियों से जागरूक होती आ रही हैं। हाँ , जागरूक स्त्रियों के प्रतिशत में बढ़ोत्तरी अब दिनोंदिन बढ़ती जा रही है , जो स्त्री के नाते सुखद मानती हूँ। मैं अगर अपनी बात करूँ तो सदियों पहले की तो नहीं , लेकिन अपनी तीन पीढ़ी की महिलाओं के बारे में ज़रूर जानती हूँ। दादी और उनकी माँ , नानी और अपनी माँ! इन सबमें मेरी माँ बेहद सजग और जागरूक महिला थीं। वे लोगों की मतलब पुरुष और स्त्रियाँ जो अपने वजूद से अनभिज्ञ होती थीं , उनकी चालाकियाँ , चापलूसियाँ , बातों की हेराफेरी , कार्मिक कुटिलताओं की मुर्कियाँ और पुरुषगत भीरू नियति को चुटकियों में पहचान कर उसके प्रति अपना मौन विद्रोह श