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Showing posts from July 15, 2021

मन से रहती सदा सफ़र में

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  भरम जाल में भूला मौसम तुम भी सावन वापस जाना।।   नदी संस्कृति वाली सूखी , गए सूख मन ताल पोखरे मेंहदी वाली सूखी यादें हैं नयन कटोरे भरे-भरे   नहीं सुभीते हरियाले अब उत्सव तुम ओझल हो जाना।।   बादल बने डाकिए फिरते   बिना पते की चिट्ठी लेकर मीलों चल आते दरवाज़े जाते खाली गागर देकर   तने धनुक नभ कुंठाओं के अवनी तुम भी रंग छिपाना।।   कैसी होगी सरहद उसकी जिस धरती ने सौंपा बाना मन से रहती सदा सफ़र में लेकिन मिलता नहीं ठिकाना    पूजा विनती साँझ-सकारे उर में थोड़ी धीर बंधाना।। ***