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पान लगे कड़ुआ सखी

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  पान  लगे  कड़ुआ  सखी , कत्था धूरस रंग हिरदय  के तालाब में ,  किसने  घोली भंग।। ** सरसों   फूली  खेत  में , कंत पड़े परदेश सब कहते मधुमास है , लगता विरही वेश।। ** अमराई  की  देह  में ,  व्यापा  सूखा  रोग पंचम सुर भी खटकते , ज्यों विष का हो भोग।। ** धरना पर धर के  हुए , कितने घर बरवाद राजा बैठा  महल में , जांचे  वाद -विवाद ।। ** सखि फागुन के हाथ में , छलका पड़े गुलाल पतझड़  ने सूनी करी , मन-उमंग की डाल।। ** भादों  भरा  बुखार  में ,  सावन उदर विकार मलिहा  बैठी  त्रास  में ,  कैसे  चुके उधार।। ** सपने   सीमा  लांघते , देह  न  देती साथ क्या  वसंत क्या सावना , धुनते रहते माथ।। ** निर्मोही  मौसम  हुआ ,  हुमक लगाता आग घर  बाहर  बरसात है ,  कैसे  खेलें  फाग।। ** अटिया  पर  बैठा दिखा ,   काला  कर्कश काग कांव  कांव  में  दे  गया , दिल पर गहरा दाग।। ** उन जनाने मनों का वसंत जिनके पति , भाई और पिता दिल्ली में धरना धरने में व्यस्त हैं .....