पान लगे कड़ुआ सखी
पान लगे कड़ुआ सखी, कत्था धूरस रंग
हिरदय के तालाब में, किसने घोली भंग।।
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सरसों फूली खेत में, कंत पड़े परदेश
सब कहते मधुमास है, लगता विरही वेश।।
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अमराई की देह में, व्यापा सूखा रोग
पंचम सुर भी खटकते,ज्यों विष का हो भोग।।
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धरना पर धर के हुए, कितने घर बरवाद
राजा बैठा महल में , जांचे वाद -विवाद ।।
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सखि फागुन के हाथ में,छलका पड़े गुलाल
पतझड़ ने सूनी करी, मन-उमंग की डाल।।
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भादों भरा बुखार में, सावन उदर विकार
मलिहा बैठी त्रास में, कैसे चुके उधार।।
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सपने सीमा लांघते, देह न देती साथ
क्या वसंत क्या सावना, धुनते रहते माथ।।
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निर्मोही मौसम हुआ, हुमक लगाता आग
घर बाहर बरसात है, कैसे खेलें फाग।।
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अटिया पर बैठा दिखा, काला कर्कश काग
कांव कांव में दे गया, दिल पर गहरा दाग।।
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उन जनाने मनों का वसंत जिनके पति, भाई और पिता दिल्ली
में धरना धरने में व्यस्त हैं .....
फाग भरे बेहतरीन दोहे
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद वन्दना जी !!
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२७-०२-२०२१) को 'नर हो न निराश करो मन को' (चर्चा अंक- ३९९०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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अनीता सैनी
सुन्दर दोहे ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुंदर दोहे
ReplyDeleteवाह
आप सभी आदरनीय मित्रों को धन्यवाद !!
ReplyDeleteफाग में विरह, सुंदर हृदय स्पर्शी दोहे।
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