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संबंधों की त्रिज्या पर समाज-निर्माण

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मानव जीवन में सम्बंध-समाज दोनों का विशेष महत्व है। इन दोनों के सुचितापूर्ण तादात्म से मनुष्य अपनी शारीरिक-मानसिक दोनों प्रकार की ताकत को हासिल कर जीवनयापन करता है। मानव ,  संबंधों की त्रिज्या पर समाज-निर्माण करता है और समाज में रहकर स्वयं के विकास के साथ-साथ अपनों के विकसित होने के कारकभी खोजता-जुटाता रहता है इसलिए मनुष्य को सामाजिक प्राणी कहा जाता है।   मानव और समाज चोलीदामन की तरह  जीवन के क्रियान्वयन को साधता है ।  समाज में रहकर समाज और मानव की हर प्रकार की आवश्यकताएँ पूरी हो सकती हैं ।  इसी बिना पर मनुष्य के एकल चरित्र निर्माण की बात हो या संबंधों की भावनात्मक समझ का स्रोत दोनों समाज में परिपूर्ण होते देखे जा सकते हैं। मनुष्य एक ऐसा प्राणी है जो अकेले जीवन यापन करने में असुविधा महसूस करता है ,  उसे अपने सुख-दुख बाँटने के लिए संबंधों-सम्बन्धियों की आवश्यकता होती है।   संबंधों के चारित्रिक विधान को विधिवत समझने के लिए समाज मुख्य भूमिका निभाता है। जिस तरह मनुष्य का समाजिक परिवेश होता है, पशु-पक्षियों का भी अपना सम्बंधात्मक समाज होता है। मनुष्य-समाज की  सम्बंधात्मक एकता अहम और आवश्यक प